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________________ समुद्घात का स्वरूप १६५ १४४ - केवलिसमुग्याए णं भंते ! कइसमइए पण्णत्ते ? गोयमा ! अट्ठसमइए पण्णत्ते। तं जहा—पढमे समए दंडं करेइ, बिईए समए कवाडं करेइ, तइए समए मंथं करेइ, चउत्थे समये लोयं पूरेइ, पंचमे समए लोयं पडिसाहरइ, छटे समए मंथं पडिसाहरइ, सत्तमे समए कवाडं पडिसाहरइ, अट्ठमे समए दंडं पडिसाहरइ। तओ पच्छा सरीरत्थे भवइ। १४४- भगवन् ! केवली-समुद्घात कितने समय का कहा गया है ? गौतम! केवली-समुद्घात आठ समय का कहा गया है। जैसे—पहले समय में केवली आत्मप्रदेशों को विस्तीर्ण कर दण्ड के आकार में करते हैं अर्थात् पहले समय में उनके आत्मप्रदेश ऊर्ध्वलोक तथा अधोलोक के अन्त तक प्रसृत होकर दण्डाकार हो जाते हैं। दूसरे समय में वे (केवली) आत्मप्रदेशों को विस्तीर्ण कर कपाटाकार करते हैं—आत्मप्रदेश पूर्व तथा पश्चिम दिशा में फैलकर कपाट का आकार धारण कर लेते हैं। तीसरे समय में केवली उन्हें विस्तीर्ण कर मन्थानाकार करते हैं—आत्मप्रदेश दक्षिण तथा उत्तर दिशा में फैलकर मथानी का आकार ले लेते हैं । चौथे समय में केवली लोकशिखर सहित इनके अन्तराल की पूर्ति हेतु आत्मप्रदेशों को विस्तीर्ण करते हैं। पांचवें समय में अन्तराल स्थित आत्मप्रदेशों को प्रतिसंहृत करते हैं वापस संकुचित करते हैं। छठे समय में मन्थानी के आकार में अवस्थित आत्मप्रदेशों को प्रतिसंहृत करते हैं। सातवें समय में कपाट के आकार में स्थित आत्मप्रदेशों को प्रतिसंहृत करते हैं। आठवें समय में दण्ड के आकार में स्थित आत्मप्रदेशों को प्रतिसंहृत करते हैं तत्पश्चात् वे (पूर्ववत्) शरीरस्थ हो जाते हैं। १४५- से णं भंते ! तया समुग्घायं गए किं मणजोगं जुंजइ ? वयजोगं जुंजइ ? कायजोगं जुंजइ ? गोयमा ! णो मणजोगं जुंजइ, णो वयजोगं जुंजइ, कायजोगं जुंजइ। भगवन् ! समुद्घातगत समुद्घात में प्रवर्तमान केवली क्या मनोयोग का प्रयोग करते हैं ? क्या वचनयोग का प्रयोग करते हैं ? क्या काययोग का प्रयोग करते हैं ? गौतम! वे मनोयोग का प्रयोग नहीं करते। वचनयोग का प्रयोग नहीं करते । वे काययोग का प्रयोग करते हैं। अर्थात् वे मानसिक तथा वाचिक कोई क्रिया न कर केवल कायिक क्रिया करते हैं। १४६- कायजोगं जुंजमाणे किं ओरालियसरीरकायजोगं जुंजइ ? ओरालियमिस्ससरीरकायजोगं झुंजइ ? वेउव्वियसरीरकायजोगं झुंजइ ? वेउव्वियमिस्ससरीरकायजोगं जुंजइ ? आहारगसरीरकायजोगं जुंजइ ? आहारगमिस्ससरीरकायजोगं जुंजइ ? कम्मसरीरकायजोगं जुंजइ ? गोयमा! ओरालियसरीरकायजोगं जुंजइ, ओरालियमिस्ससरीरकायजोगं पि जुंजइ, णो वेउब्वियसरीरकायजोगं जुंजइ, णो वेउव्वियमिस्ससरीरकायजोगं जुंजइ, णो आहारगसरीरकायजोगं झुंजइ, णो आहारगमिस्ससरीरकायजोगं जुंजइ, कम्मसरीर-कायजोगं पि जुंजइ, पढमट्ठमेसु समएसु ओरालियसरीरकायजोगं झुंजइ, बिइयछट्ठसत्तमेसु समएसु ओरालियमिस्ससरीरकायजोगं जुंजइ, तइयचउत्थपंचमेहि कम्मसरीरकायजोगं जुंजइ।
SR No.003452
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1992
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_aupapatik
File Size17 MB
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