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आधुनिक चिन्तकों का यह भी अभिमत है कि औपपातिक का उपांगों में प्रथम स्थान है, वह उचित नहीं है, क्योंकि ऐतिहासिक दृष्टि से प्रज्ञापना का प्रथम स्थान होना चाहिए। कारण यह है कि प्रज्ञापना के रचयिता श्यामाचार्य हैं जो महावीर निर्वाण के तीन सौ पैंतीस में युगप्रधान आचार्य पद पर विभूषित हुए थे। इस दृष्टि से प्रज्ञापना प्रथम उपांग होना चाहिए। हमारी दृष्टि से औपपातिक को जो प्रथम स्थान मिला है, वह उसकी कुछ मौलिक विशेषताओं के कारण ही मिला है। इसके सम्बन्ध में हम आगे की पंक्तियों में चिन्तन करेंगे।
यह पूर्ण सत्य है कि आचारांग में जो विषय चर्चित हुए हैं, उन विषयों का विश्लेषण जैसा औपपातिक में चाहिए, वैसा नहीं हुआ है। उपांग अंगों के पूरक और यथार्थ संगति बिठाने वाले नहीं हैं, किन्तु स्वतन्त्र विषयों का निरूपण करने वाले हैं। मूर्धन्य मनीषियों के लिए ये सारे प्रश्न चिन्तनीय हैं।
औपपातिक प्रथम उपांग है। अंगों में जो स्थान आचारांग का है, वही स्थान उपांगों में औपपातिक का है। प्रस्तुत आगम के दो अध्याय हैं। प्रथम का नाम समवसरण है और दूसरे का नाम उपपात है। द्वितीय अध्याय में उपत सम्बन्धी विविध प्रकार के प्रश्न चर्चित हैं। एतदर्थी नवांगी टीकाकार आचार्य अभयदेव ने औपपातिकवत्ति में लिखा है-उपपात-जन्मदेव और नारकियों के जन्म तथा सिद्धि-गमन के वर्णन से प्रस्तुत आगम का नाम औपपातिक है।
विन्टरनित्ज ने औपपातिक के स्थान पर उपपादिक शब्द का प्रयोग किया है। पर औपपातिक में जो अर्थ की गम्भीरता है, वह उपपादिक शब्द में नहीं है। प्रस्तुत आगम का प्रारम्भिक अंश गद्यात्मक है और अंतिम अंश पद्यात्मक है। मध्य भाग में गद्य और पद्य का सम्मिश्रण है। किन्तु कुल मिला कर प्रस्तुत सूत्र का अधिकांश भाग गद्यात्मक ही है। इसमें एक ओर जहाँ राजनैतिक, सामाजिक और नागरिक तथ्यों की चर्चाएं की हैं, दूसरी ओर धार्मिक, दार्शनिक एवं सांस्कृतिक तथ्यों का भी सुन्दर प्रतिपादन हुआ है। इस आगम की यह सबसे बड़ी विशेषता है कि इसमें जो विषय चर्चित किये गये हैं, वे विषय पूर्ण विस्तार के साथ चर्चित हुए हैं। यही कारण है कि भगवती आदि अंग-आगमों में प्रस्तुत सूत्र को देखने का सूचन किया गया, जो इस आगम के वर्णन की मौलिकता सिद्ध करता है। श्रमण भगवान् महावीर का आनख-शिख समस्त अंगोपांगों का विशद वर्णन इसमें किया गया है, वैसा वर्णन अन्य किसी भी आगम में नहीं है। भगवान महावीर की शरीर-सम्पत्ति को जानने के लिए यह आगम एकमात्र आधार है। इसमें भगवान् के समवसरण का सजीव चित्रण हुआ है। भगवान् महावीर की उपदेश-विधि भी इसमें सुरक्षित है। चम्पा नगरी : एक विश्लेषण
___ चम्पा अंगदेश की राजधानी थी। अथर्ववेद में अंग का उल्लेख है। गोपथ ब्राह्मण में भी अंग और मगध का एक साथ उल्लेख हुआ है। पाणिनीय अष्टाध्यायी में भी अंग का नाम, बंग, कलिंग और पुण्ड्र आदि के नामों के साथ उल्लिखित है।१३ रामायण में अंग शब्द की व्युत्पत्ति करते हुए एक आख्यायिका दी है। शिव की क्रोधाग्नि से बचने के लिए कामदेव इस प्रदेश में भागकर आया। अंग का परित्याग कर वह अनंग हो गया। इस घटना से प्रस्तुत क्षेत्र का नाम अंग हुआ। जातकों से यह भी परिज्ञात होता है कि तथागत बुद्ध से पूर्व राज्यसत्ता के लिए मगध और अंग में परस्पर संघर्ष होता था।५ बुद्ध के समय अंग
१०. . उपपतनं उपपातो—देव-नारक-जन्म सिद्धिगमनं च। अतस्तमधिकृत्य कृतमध्ययनमौपपातिकम्।
- औप. अभयदेव वृत्ति ११. अथर्ववेद–५-२२-१४ १२. गोपथ ब्राह्मण-२-९ १३. अष्टाध्यायी-४-१-१७० १४. रामायण-४७-१४ १५. जातक, पालिटैक्स्ट-सोसायटी, जिल्द-४, पृ. ४५४, जिल्द ५वीं पृ. ३१६, जिल्द छठी पृ. २७१
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