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________________ १४४ औपपातिकसूत्र १०२- गोयमा ! महाविदेहे वासे जाइं कुलाइं भवंति–अड्डाई, दित्ताइं, वित्ताइं, वित्थिण्णविउल भवण-सयणासण-जाण-वाहणाई, बहुधण-जायरूव-रययाई, आओगपओगसंपउत्ताई विच्छड्डियपउरभत्तपाणाइं, बहुदासीदासगोमहिसगवेलगप्पभूयाइं, बहुजणस्स अपरिभूयाइं, तहप्पगारेसु कुलेसु पुमत्ताए पच्चायाहिति। १०२– गौतम! महाविदेह क्षेत्र में ऐसे जो कुल हैं यथा-धनाढ्य, दीप्त—दीप्तिमान्, प्रभावशाली या दृप्तस्वाभिमानी, सम्पन्न, भवन, शयन —ओढ़ने-बिछाने के वस्त्र, आसन—बैठने के उपकरण, यान—माल-असबाब ढोने की गाड़ियाँ, वाहन —सवारियाँ आदि विपुल साधन-सामग्री तथा सोना, चाँदी, सिक्के आदि प्रचुर धन के स्वामी होते हैं। वे आयोग-प्रयोग-संप्रवृत्त व्यावसायिक दृष्टि से धन के सम्यक् विनियोग और प्रयोग में निरतनीतिपूर्वक द्रव्य के उपार्जन में संलग्न होते हैं। उनके यहाँ भोजन कर चुकने के बाद भी खाने-पीने के बहुत पदार्थ बचते हैं। उनके घरों में बहुत से नौकर, नौकरानियाँ, गायें, भैंसे, बैल, पाड़े, भेड़-बकरियाँ आदि होते हैं। वे लोगों द्वारा अपरिभूत—अतिरस्कृत होते हैं—इतने रोबीले होते हैं कि कोई उनका परिभव तिरस्कार या अपमान करने का साहस नहीं कर पाता। अम्बड (देव) ऐसे कुलों में से किसी एक में पुरुषरूप में उत्पन्न होगा। ____१०३ - तए णं तस्स दारगस्स गब्भत्थस्स चेव समाणस्स अम्मापिईणं धम्मे दढा पइण्णा भविस्सइ। १०३– अम्बड शिशु के रूप में जब गर्भ में आयेगा, (उसके पुण्य-प्रभाव से) माता-पिता की धर्म में आस्था दृढ़ होगी। १०४- से णं तत्थ णवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अट्ठमाणराइंदियाणं वीइक्कंताणं सुकुमालपाणिपाए, जाव (अहीणपडिपुण्णपंचिंदियसरीरे, लक्खणवंजणगुणोववेए, माणुम्माणप्पमाणपडिपुण्णसुजायसव्वंगसुंदरंगे,) ससिसोमाकारे, कंते, पियदंसणे, सुरूवे दारए पयाहिति। १०४– नौ महीने साढ़े सात दिन व्यतीत होने पर बच्चे का जन्म होगा। उसके हाथ-पैर सुकोमल होंगे। उसके शरीर की पाँचों इन्द्रियाँ अहीन-प्रतिपूर्ण रचना की दृष्टि से अखण्डित एवं सम्पूर्ण होंगी। वह उत्तम लक्षण —सौभाग्यसूचक हाथ की रेखाएँ आदि, व्यंजन उत्कर्षसूचक तिल, मस आदि चिह्न तथा गुणयुक्त होगा। दैहिक फैलाव, वजन, ऊँचाई आदि की दृष्टि से वह परिपूर्ण, श्रेष्ठ तथा सर्वांगसुन्दर होगा। उसका आकार चन्द्र के सदृश सौम्य होगा। वह कान्तिमान्, देखने में प्रिय एवं सुरूप होगा। १०५-तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो पढमे दिवसे ठिइवडियं काहिंति, बिइयदिवसे चंदसूरदंसणियं काहिंति, छठे दिवसे जागरियं काहिंति, एक्कारसमे दिवसे वीइक्कंते णिव्वत्ते असुइजायकम्मकरणे संपत्ते बारसाहे दिवसे अम्मापियरो इमं एयारूवं गोण्णं, गुणणिप्फण्णं णामधेनं काहिंति जम्हा णं अम्हं इमंसि दारगंसि गब्भत्थंसि चेव समाणंसि धम्मे दढपइण्णा तं होउ णं अम्हं दारए 'दढपइण्णे' णामेणं। तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो णामधेजं करेहिति दढपइण्णत्ति। १०५-- तत्पश्चात् माता-पिता पहले दिन उस बालक का कुलक्रमागत पुत्रजन्मोचित अनुष्ठान करेंगे। दूसरे
SR No.003452
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1992
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_aupapatik
File Size17 MB
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