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________________ प्रस्तावना (प्रथम संस्करण से) औपपातिकसूत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन जैन आगम साहित्य का प्राचीनतम वर्गीकरण समवायांग में प्राप्त है । वहाँ पूर्व और अंग के रूप में विभाग किया गया है। संख्या की दृष्टि से पूर्व चौदह थे और अंग बारह थे। नन्दीसूत्र में दूसरा आगमों का वर्गीकरण मिलता है। वहाँ सम्पूर्ण आगम साहित्य को अंगप्रविष्ट और अंगबाह्य के रूप में विभक्त किया है। आगमों का तीसरा वर्गीकरण अंग, उपांग, मूल और छेद के रूप में किया गया है। यह वर्गीकरण सभी से उत्तरवर्ती है। नन्दीसूत्र में आचार्य देववाचक ने मूल और छेद ये दो विभाग नहीं किये हैं और न उपांग शब्द का प्रयोग ही किया है। उपांग शब्द अर्वाचीन है। "उपांग" शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग आगमों के लिए किसने किया? यह शोधार्थियों के लिए अन्वेषणीय है। आचार्य उमास्वाति ने जो जैनदर्शन के तलस्पर्शी मूर्धन्य मनीषी थे, प्रज्ञाचक्षु पं. सुखलालजी संघवी ने जिनका समय विक्रम की प्रथम शताब्दी से चतुर्थ शताब्दी के मध्य माना है , तत्त्वार्थभाष्य में अंग के साथ उपांग शब्द का प्रयोग किया है और उपांग से उनका तात्पर्य अंगबाह्य आगम है। आचार्य श्रीचन्द्र ने सुखबोधा समाचारी की रचना की है, जिनका समय ई.१११२ से पूर्व माना जाता है। उन्होंने आगम के स्वाध्याय की तपोविधि का वर्णन करते हुए अंगबाह्य के अर्थ में ही उपांग शब्द का प्रयोग किया है। - आचार्य जिनप्रभ ने 'विधिमार्गप्रपा' ग्रन्थ की संरचना की। यह ग्रन्थ ई. १३०६ में पूर्ण हुआ। प्रस्तुत ग्रन्थ में आगमों की स्वाध्याय-तप-विधि का वर्णन करते हुए'इयाणिं उवंगा' लिखकर जिस अंग का जो उपांग है उसका उल्लेख किया है। १. चउदस पुष्वा पण्णत्ता, तं जहा उप्पायपुव्वमग्गेणियं च तइयं च वीरियं पुव्वं । अत्थीनत्थिपवायं तत्तो नाणप्पवायं च ॥ सच्चप्पवायपुव्वं तत्तो आयप्पवायपुव्वं च । कम्मप्पवायपुव्वं पच्चक्खाणं भवे नवमं ॥ विज्जाअणुप्पवायं अवंझपाणाउ बारसं पुव्वं । तत्तो किरियविसालं पुव्वं तहं बिंदुसारं च ॥ - समवायांग, समवाय-१४ समवायांग, समवाय १३६ अहवा तं समासओ दुविहं पण्णत्तं, तं जहा–अङ्गपविट्ठ अङ्गबाहिरं व। - नन्दी, सूत्र ४३ ४. तत्त्वार्थसूत्र-पं. सुखलालजी, विवेचन पृ. ९ अन्यथा हि अनिबद्धमंगोपांगशः समुद्रप्रतरणवद् दुरध्यवसेयं स्यात्। - तत्त्वार्थभाष्य १-२० सुखबोधासमाचारी पृ. ३१-३४ । जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग-१, प्रस्तावना - दलसुखभाई मालवणिया, पृ. ३८ [१५]
SR No.003452
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1992
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_aupapatik
File Size17 MB
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