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________________ ९० औपपातिकसूत्र महाराज कूणिक को सूचना ३९- तए णं से पवित्तिवाउए इमीसे कहाए लद्धढे समाणे हट्टतुट्ठ जाव' हियए ण्हाए जाव (कयबलिकम्मे, कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ते, सुद्धप्पावेसाइ, मंगल्लाइं वत्थाई पवरपरिहिए) अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइ, सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमित्ता चंपाणयरिं मझमझेणं जेणेव बाहिरिया सा चेव हेट्ठिला वत्तव्वया जाव' णिसीयइ, णिसीइत्ता तस्स पवित्तिवाउयस्स अद्धत्तेरससयसहस्साइं पीइदाणं दलयइ, दलयित्ता सक्कारेइ, सम्माणेइ, सक्कारित्ता, सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ। ___ ३९- प्रवृत्ति-निवेशक को जब यह (भगवान् महावीर के पदार्पण की) बात मालूम हुई, वह हर्षित एवं परितुष्ट हुआ। उसने स्नान किया, (नित्य-नैमित्तिक कार्य किये, कौतुक—देह-सज्जा की दृष्टि से नेत्रों में अंजन आंजा, ललाट पर तिलक लगाया, प्रायश्चित्त-दुःस्वप्नादि-दोषनिवारण हेतु चन्दन, कुंकुम,दही, अक्षत आदि से मंगल-विधान किया, उत्तम, प्रवेश्य राजसभा में प्रवेशोचित श्रेष्ठ, मांगलिक वस्त्र भलीभाँति पहने (थोड़े संख्या में कम पर बहुमूल्य आभूषणों से शरीर को अलंकृत किया। यों (सजकर) वह अपने घर से निकला। (अपने घर से) निकलकर वह चम्पा नगरी के बीच, जहाँ राजा कूणिक का महल था, जहाँ बहिर्वत्ती राजसभा-भवन था, वहाँ आया। __राजा सिंहासन पर बैठा। (बैठकर) साढ़े बारह लाख रजत-मुद्राएँ वार्ता-निवेदक को प्रीतिदान—तुष्टिदान या पारितोषिक के रूप में प्रदान की। उत्तम वस्त्र आदि द्वारा उसका सत्कार किया, आदरपूर्ण वचनों से सम्मान किया। यों सत्कृत, सम्मानित कर उसे विदा किया। विवेचन— मध्य के 'जाव' शब्द द्वारा सूचित सूत्र संख्या १७-१८-१९-२० के अनुसार जान लेना चाहिए। दर्शन-वन्दन की तैयारी __४०- तए णं से कूणिए राया भंभसारपुत्ते बलवाउयं आमंतेइ, आमंतेत्ता एवं वयासिखिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेहि, हय-गय-रह-पवरजोहकलियं च चाउरंगिणिं सेणं सण्णाहेहि, सुभद्दापमुहाण य देवीणं बाहिरियाए उवट्ठाणसालाए पाडियक्कपाडियक्काई जत्ताभिमुहाई जुत्ताई जाणाई उवट्ठवेहि, चंपं च णयरि सब्भितरबाहिरियं आसिय-सम्मजिउवलित्तं, सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु आसित्त-सित्तसुइ-सम्मट्ठ-रत्यंतरावणवीहियं, मंचाइमंचकलियं, णाणाविहराग-उच्छिय-ज्झयपडागाइपडागमंडियं, लाउल्लोइयमहियं, गोसीससरसरत्तचंदण जाव (दद्दरदिण्णपंचंगुलितलं, उवचियचंदणकलसं, चंदणघडसुकयतोरणं पडिदुवारदेसभायं, आसत्तोसत्तविउलवट्टवग्घारियमल्ल-दामकलावं, पंचवण्णसरससुरहिमुक्कपुष्फपुंजोवयारकलियं, काला-गुरु-पवरकुंदुरुक्क-तुरुक्क-धूव-मघमघंतगंधुद्धयाभिरामं सुगंधवरगंध १. २. देखें सूत्र संख्या १८ देखें सूत्र संख्या १७, १८, १९, २०
SR No.003452
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1992
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_aupapatik
File Size17 MB
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