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________________ स्वाध्याय-ध्यान ६७ स्वाध्याय १. वाचना-यथाविधि, यथासमय श्रत-वाड्मय का अध्ययन, अध्यापन। २. प्रतिपृच्छना- अधीत विषय में विशेष स्पष्टीकरण हेतु पूछना, शंका-समाधान करना। ३. परिवर्तना- अधीत ज्ञान की पुनरावृत्ति, सीखे हुए को बार-बार दुहराना। ४. अनुप्रेक्षा- आगमानुसारी चिन्तन-मनन करना। ५. धर्मकथा-श्रुत-धर्म की व्याख्या-विवेचना करना। यह स्वाध्याय का स्वरूप है। ध्यान ध्यान क्या है उसके कितने भेद हैं ? ध्यान एकाग्र चिन्तन के चार भेद हैं—१. आर्तध्यान रागादि भावना से अनुप्रेरित ध्यान, २. रौद्रध्यानहिंसादि भावना से अनुरंजित ध्यान, ३. धर्मध्यान-धर्मभावना से अनुप्राणित ध्यान, ४. शुक्लध्यान-निर्मल, शुभअशुभ से अतीत आत्मोन्मुख शुद्ध ध्यान। __ आर्तध्यान चार प्रकार का बतलाया गया है . १. मन को प्रिय नहीं लगने वाला विषय, स्थितियाँ आने पर उनके वियोग दूर होने, दूर करने के सम्बन्ध में निरन्तर आकुलतापूर्ण चिन्तन करना। २. मन को प्रिय लगनेवाले विषयों के प्राप्त होने पर उनके अवियोग–वे अपने से कभी दूर न हों, सदा अपने साथ रहें, यों निरन्तर आकुलतापूर्ण चिन्तन करना। ३. रोग हो जाने पर उनके मिटने के सम्बन्ध में निरन्तर आकुलतापूर्ण चिन्तन करना। ४. पूर्व-सेवित काम-भोग प्राप्त होने पर, फिर कभी उनका वियोग न हो, यों निरन्तर आकुलतापूर्ण चिन्तन करना। आर्तध्यान के चार लक्षण बंतलाये गये हैं। वे इस प्रकार हैं१. क्रन्दनता-जोर से क्रन्दन करना रोना-चीखना। २. शोचनता- मानसिक ग्लानि तथा दैन्य अनुभव करना। ३. तेपनता- आँसू ढलकाना। ४. विलपनता- विलाप करना-"हाय! मैंने पूर्व जन्म में कितना बड़ा पाप किया, जिसका यह फल मिल रहा है।" इत्यादि रूप में बिलखना। रौद्रध्यान चार प्रकार का बतलाया गया है, जो इस प्रकार है १. हिंसानुबन्धी– हिंसा का अनुबन्ध या सम्बन्ध लिये एकाग्र चिन्तन–हिंसा को उद्दिष्ट कर ध्यान की एकाग्रता। २. मृषानुबन्धी— असत्य-सम्बद्ध-असत्य को उद्दिष्ट कर एकाग्र चिन्तन। ३. स्तैन्यानुबन्धी-चोरी से सम्बद्ध एकाग्र चिन्तन। ४. संरक्षणानुबन्धी- धन आदि भोग-साधनों के संरक्षण हेतु औरों के प्रति हिंसापूर्ण एकाग्र चिन्तन । १. शुचं शोकं क्लमयति-अपनयतीति शुक्लम-जो जन्म-मरण रूप शोक का अपनयन–क्षय करे।
SR No.003452
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1992
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_aupapatik
File Size17 MB
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