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________________ द्वितीय अध्ययन] [३९ कामध्वजा वेश्या के साथ मनुष्य सम्बन्धी भोगों का उपभोग करते हुए उज्झित कुमार को देखा। देखते ही वह क्रोध से लाल-पीला हो गया। मस्तक पर त्रिवलिक भृकुटि–तीन रेखाओं वाली भोंह (लोचनविकारविशेष) चढ़ाकर अपने अनुचरों के द्वारा उज्झितक कुमार को पकड़वाया। पकड़वाकर यष्टि (लकड़ी), मुष्टि (मुक्का ), जानु (घुटना), कूर्पर (कोहनी) के प्रहारों से उसके शरीर को चूरचूर और मथित करके अवकोटक बन्धन (जिस बन्धन में ग्रीवा को पृष्ठ भाग में ले जाकर हाथों के साथ बांधा जाये) से बांधा और बाँधकर 'इसी प्रकार से वह बध्य है' (जैसा तुमने देखा है) ऐसी आज्ञा दी। ___ हे गौतम! इस प्राकर वह उज्झितक कुमार पूर्वकृत पापमय कर्मों का फल भोग रहा है। उज्झितक का भविष्य २४–'उज्झियए णं भंते! दारए इओ कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिइ, कहिं उववजिहिइ ?' गोयमा! उज्झियए दारगे पणवीसं वासाइं परमाउयं पालइत्ता अजेव तिभागावसेसे दिवसे सूलीभिन्ने कए समाणे कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयत्ताए उववजिहिइ। . सेणं तओ अणंतरं उव्वट्टित्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वेयड्ढगिरिपायमूले वाणरकुलंसि वाणरत्ताए उववज्जिहिइ। से णं तत्थ उम्मुक्कबालभावे तिरियभोगेसु मुच्छिए, गिद्धे, गढिए, अज्झोववन्ने, जाए जाए वाणरपेल्लए वहेइ।तं एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायारे कालमासे कालं किच्चा इहेव जम्बुद्दीवे दीवे भारहे वासे इन्दपुरे नयरे गणियाकुलंसि पुत्तत्ताए पच्चायाहिए। तए णं तं दारयं अम्मापियरो जायमेत्तकं वद्धेहिन्ति, नपुसंगकम्मं सिक्खावेहिंति। तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो निव्वत्तबारसाहस्स इमं एयारूवं नामधेन्जं करेहिंति, तं जहा—'होउण अहं इमे दारए पियसेणे नामं नपुंसए।' तए णं से पियसेणे नपुंसए उम्मुक्कबालभावे जोव्वणगमणुप्पत्ते विनयपरिणयमेत्ते रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णेण य उक्किठे उक्तिट्ठसरीरे भविस्सइ। तए णं से पियसेणे नपुंसए इन्दपुरे नयरे वहवे राईसर-जाव (तलवर-माडंबिय-कोडुंबियइब्भ-सेट्टि-सेणावइ-) पभिइओ बहूहि य विज्जापयोगेहि य मंतचुण्णेहि य हियउड्डावणाहि य निण्हवणेहि य पण्हवणेहि य वसीकरणेहि य आभियोगिएहि य अभियोगित्ता उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरिस्सइ। २४—गौतम स्वामी ने प्रश्न किया—हे प्रभो! यह उज्झितक कुमार यहाँ से कालमास में काल करके कहां जायेगा? और कहां उत्पन्न होगा ? भगवान्—गौतम! उज्झितक कुमार २५ वर्ष की पूर्ण आयु को भोगकर आज ही त्रिभागावशेष दिन में (दिन के चौथे प्रहर में) शूली द्वारा भेद को प्राप्त होकर कालमास में काल करके–मर कर रत्नप्रभा नामक प्रथम नरक में नारक रूप में उत्पन्न होगा। वहां से निकलकर सीधा इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप में भारतवर्ष के वैताढ्य पर्वत के पादमूल तलहटी (पहाड़ के नीचे की भूमि में) वानर कुल में
SR No.003451
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_vipakshrut
File Size5 MB
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