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________________ प्रथम अध्ययन] [२३ । व जन्मान्ध बालक को देखकर मृगादेवी भयभीत हुई और मुझे बुलाया। बुलाकर इस प्रकार कहा—'हे देवानुप्रिये! तुम जाओ और इस बालक को ले जाकर एकान्त में किसी कूड़े-कचरे के ढेर पर फेंक आओ। अतः हे स्वामिन् ! आप ही मुझे बतलाएँ कि मैं उसे एकान्त में ले जाकर फेंक आऊँ या नहीं?' __२९—तए णं से विजए खत्तिए तीसे अम्मधाईए अंतिए एयमढं सोच्चा निसम्म तहेव संभंते उट्ठाए उठेइ उठेत्ता जेणेव मियादेवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मियादेविं एवं वयासी—'देवाणुप्पिया! तुब्भं पढमं गब्भे। तं जइ णं तुब्भे एयं एगते उक्कुरुडियाए उज्झसि, तओ णं तुब्भं पया ने थिरा भविस्सइ। तो णं तुमं एयं दारगं रहस्सियगंसि भूमिघरंसि रहस्सिएणं भत्तपाणेणं पडिजागरमाणी विहराहि; ते णं तुब्भं पया थिरा भविस्सइ।' तए णं सा मियादेवी विजयस्स खत्तियस्स 'तह' त्ति एयमढें विणएणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता तं दारगं रहस्सियंसि भूमिघरंसि रहस्सिएणं भत्तपाणेणं पडिजागरमाणी पडिजागरमाणी विहरइ। २९—उसके बाद वह विजय नरेश उस धायमाता के पास से यह सारा वृत्तान्त सुनकर सम्भ्रान्तव्याकुल-से होकर जैसे ही बैठे थे (सत्वर) उठकर खड़े हो गये। खड़े होकर जहाँ रानी मृगादेवी थी, वहाँ आये और मृगादेवी से इस प्रकार कहने लगे—'हे देवानुप्रिये ! तुम्हारा यह प्रथम गर्भ है, यदि तुम इसको (एकान्त स्थान में) कूड़े-कचरे के ढेर पर फिकवा दोगी तो तुम्हारी भावी प्रजा-सन्तान स्थिर न रहेगी अर्थात् उसे हानि पहुंचेगी। अतः (फेंकने की अपेक्षा) तुम इस बालक को गुप्त भूमिगृह (भोरे) में रखकर गुप्त रूप से भक्तपानादि के द्वारा इसका पालन-पोषण करो। ऐसा करने में तुम्हारी भावी सन्तति स्थिर रहेगी। तदनन्तर वह मृगादेवी विजय क्षत्रिय के इस कथन को स्वीकृतिसूचक 'तथेति' (बहुत अच्छा) ऐसा कहकर विनम्र भाव से स्वीकार करती है और स्वीकार करके उस बालक को गुप्त भूमिगृह में स्थापित कर गुप्तरूप से आहारपानादि के द्वारा पालन-पोषण करती हुई समय व्यतीत करने लगी। ३०—एवं खलु गोयमा! मियापुत्ते दारए पुरापोराणं जाव' पच्चणुभवमाणे विहरइ! ३०-भगवान् महावीर स्वामी फरमाते हैं—हे गौतम! यह मृगापुत्र दारक अपने पूर्वजन्मोपार्जित कर्मों का प्रत्यक्ष रूप से फलानुभव करता हुआ इस तरह समय-यापन कर रहा है। मृगापुत्र का भविष्य . ३१—मियापुत्ते णं भंते! दारए इओ कालमासे कालं किच्चा कहिं गमिहिइ ? कहिं उववज्जिहिइ? ३१—हे भगवन् ! यह मृगापुत्र नामक दारक यहाँ से मरणावसर पर मृत्यु को पाकर कहाँ जायेगा? और कहाँ पर उत्पन्न होगा ? ३२—गोयमा! मियापुत्ते दारए छव्वीसं वासाइं परमाउयं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इहेव जम्बुद्दीवे द्वीवे भारहे वासे वेयड्डगिरिपायमूले सीहकुलंसि सीहत्ताए पच्चायाहिइ। से णं तत्थ सीहे भविस्सइ अहम्मिए जाव बहुनगरणिग्गयजसे सूरे दढप्पहारी साहसिए, सुबई पावकम्मं समजिणइ, समजिणित्ता, कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोसं सागरोवमट्ठिइएसु जाव (नेरइएसु नेरइयत्ताए) उववजिहिइ। सूत्र १ ।१ । १८
SR No.003451
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_vipakshrut
File Size5 MB
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