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________________ २२] [विपाकसूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध २७-तस्स णं दारगस्स गब्भगयस्स चेव अट्ठ नालीओ अधिभतरप्पवहाओ, अट्ठ नालीओ बाहिरप्पवहाओ, अट्ठ पूयप्पवहाओ, अट्ठ सोणियप्पवहाओ, दुवे-दुवे कण्णंतरेसु, दुवे दुवे अच्छिअंतरेसु, दुवे दुवे नक्कंतरेसु, दुवे दुवे धमणि-अंतरेसु अभिक्खणं अभिक्खणं पूयं च सोणियं च परिस्सवमाणीओ परिस्सवमाणीओ चेव चिटुंति।। तस्स णंदारगस्स गब्भगयस्स चेव अग्गिए नामं वाही पउब्भूए।जे णं से दारए आहारेइ, से णं खिप्पामेव विद्धंसमागच्छइ, पूयत्ताए सोणियत्ताए य परिणमइ। तं पि य से पूयं च सोणियं च आहारेइ। २७ –गर्भगत उस बालक की आठ नाड़ियाँ अन्दर की ओर बह रही थी और आठ नाड़ियाँ बाहर की ओर बह रही थी। उनमें प्रथम आठ नाड़ियों से रुधिर बह रहा था। इन सोलह नाड़ियों में से दो नाड़ियाँ कर्ण-विवरों-छिद्रों में, दो-दो नाड़ियाँ नेत्रविवरों में, दो-दो नासिकाविवरों में तथा दो-दो धमनियों (हृदयकोष्ठ के भीतर की नाड़ियों) में बार-बार पीव व लोहू बहा रही थी। गर्भ में ही उस बाल भस्मक नामक व्याधि उत्पन्न हो गयी थी, जिसके कारण वह बालक जो कुछ खाता, वह शीघ्र ही भस्म हो जाता था. तथा वह तत्काल पीव व शोणित के रूप में परिणत हो जाता था। तदनन्तर वह बालक उस पीव व शोणित को भी खा जाता था। २८—तए णं सा मियादेवी अन्नया कयाइ नवण्हं मासाणं बहुपुण्णाणं दारगं पयाया जाइअन्धे जाव [ जाइमूए जाइबहिरे, जाइपंगुले हुंडे य वायव्वे। णत्थि णं तस्स दारगस्स हत्था वा पाया वा कण्णा वा अच्छी वा नासा वा। केवलं से तेसिं अंगाणं ] आगिइमेत्ते। तए णं सा मियादेवी तं दारंग हुंडं अन्धरूवं पासइ, पासित्ता भीया तत्था तसिया उव्विग्गा संजातभया अम्मधाई सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी—'गच्छह णं देवाणुं प्पिया ! तुम एयं दारगं एगते उक्कुरडियाए उज्झाहि।' तए णं सा अम्मधाई मियादेवीए तह' त्ति एयमढं पडिसुणेई, पडिसुणित्ता जेणेव विजए खत्तिए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं जाव (सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु) एवं वयासी-एवं खलु सामी? मियादेवी नवण्हं मासाणं जाव आगिइमेत्ते ! तए णं सा मियादेवी हंडं अन्धरूवं पासह. पासित्ता भीया तत्था उब्विग्गा संजायभया ममं सहावेड. सहावेत्ता एवं वयासी 'गच्छहणं तब्भे देवाणप्पिया! एयंदारगं एगन्ते उक्करुडियाए उज्झाहि।' तं संदिसह णं सामी! तं दारगं अहं एगन्ते उज्झामि उदाहु मा!' २८–तत्पश्चात् नौ मास परिपूर्ण होने के अनन्तर मृगादेवी ने एक बालक को जन्म दिया जो जन्म से अन्धा और अवयवों की आकृति मात्र रखने वाला था। तदनन्तर विकृत, बेहूदे अंगोपांग वाले तथा अन्धरूप उस बालक को मृगादेवी ने देखा और देखकर भय, त्रास, उद्विग्नता और व्याकुलता को प्राप्त हुई। (भयातिरेक से उसका शरीर काँपने लगा)। उसने तत्काल धायमाता को बुलाया और बुलाकर इस प्रकार कहा—'हे देवानुप्रिये! तुम जाओ और इस बालक को ले जाकर एकान्त में किसी कूड़े-कचरे के ढेर (रोडी) पर फेंक आओ। तदनन्तर उस धायमाता ने मृगादेवी के इस कथन को बहुत अच्छा' इस प्रकार कहकर स्वीकार किया और स्वीकार करके वह जहाँ विजय नरेश थे वहाँ पर आयी और दोनों हाथ जोड़कर इस प्रकार कहने लगी—'हे स्वामिन ! पूरे नव मास हो जाने पर मृगादेवी ने एक जन्मान्ध यावत् अवयवों की आकृति मात्र रखने वाले बालक को जन्म दिया है। उस हुण्ड बेहूदे अवयववाले, विकृतांग
SR No.003451
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_vipakshrut
File Size5 MB
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