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________________ किया। प्रारम्भ में आचार्य ने भगवान् महावीर को नमस्कार कर विपाकसूत्र पर वृत्ति लिखने की प्रतिज्ञा की और विपाकश्रुत का शब्दार्थ प्रस्तुत किया। वृत्तिकार ने अनेक पारिभाषिक शब्दों के संक्षिप्त और सारपूर्ण अर्थ भी दिये हैं। उदाहरण के रूप में रट्ठकूडे' का अर्थ 'रट्ठकूड, रटउड, राष्ट्रकूट-टुउडेत्ति राष्ट्रकूटो मण्डलोपजीवी राजनियोगिकः' किया है। वृत्ति के अन्त में विज्ञों को यह नम्र निवेदन किया है कि वे वृत्ति को परिष्कृत करने का अनुग्रह करें। प्रस्तुत वृत्ति का प्रकाशन सर्वप्रथम सन् १८७६ में राय धनपतिसिंहजी ने कलकत्ता से किया। उसके पश्चात् सन् १९२० में आगमोदय समिति मुम्बई से और मुक्ति कमल जैन मोहनमाला बड़ौदा से और सन् १९३५ में गुर्जर ग्रन्थ्ञरत्न कार्यालय गांधीरोड अहमदाबाद से अंग्रेजी अनुवाद व टिप्पण के साथ प्रकाशित हुआ है। __पी.एल. वैद्य ने सन् १९३३ में प्रस्तावना के साथ प्रस्तुत आगम प्रकाशित किया। जैनधर्म प्रचारक सभा भावनगर से वि.सं. १९८७ में गुजराती अनुवाद प्रकाशित हुआ। जैनागम प्रकाशक सुमति कार्यालयकोटा से सन १९३५ में और वी.सं. २४४६ में हैदराबद से क्रमशः मुनि आनन्दसागर जी व पूज्य अमोलकऋषिजी ने हिन्दी अनुवाद सहित इस आगगम का प्रकाशन करवाया। जैनशास्त्रमाला कार्यालय लुधियाना से वि.सं. २०१० में हिन्दी में आचार्य आत्मारामजी म. कृत विस्तृत टीका युक्त संस्करण प्रकाशित हुआ है। औका में अनेक रहस्य उद्घाटित किये गये हैं। जैनशास्त्रोद्धार समिति राजकोट ने सन् १९५९ में पूज्य घासीलालजी म. कृत संस्कृत व्याख्या व हिन्दी-गुजराती अनुवाद के साथ प्रकाशित किया है। इनकी संस्कृत टीका पर आचार्य अभयदेव की वृत्ति का स्पष्ट प्रभाव है। जैनसाहित्य-प्रकाशनसमिति अहमदाबाद से सन् १९४० में गोपालदास जीवाभाई पटेल ने गुजराती छायानुवाद प्रकाशित किया है। इस तरह समय-समय पर विभिन्न स्थानों से प्रस्तुत आगम के अनेक संस्करण प्रकाशित हुए हैं। प्रस्तुत संस्करण आगमों के अभिनव संस्करण की मांग प्रतिपल प्रतिक्षण बढ़ती हुई देख कर श्रमणसंघ के युवाचार्य श्री मधुकर मुनिजी ने आगम-बत्तीसी के प्रकाशन के सम्बन्ध में चिन्तन किया और विविध विज्ञों के सहयोग से कार्य प्रारम्भ हुआ। मुझे लिखते हुए परम आह्लाद है कि स्वल्पावधि में आगमों के श्रेष्ठतम संस्करण प्रकाशित हुए हैं। इन संस्करणों की सामान्य पाठकों से लेकर मूर्धन्य मनीषियों तक ने मुक्तकंठ से प्रशंसा की। युवाचार्यश्री की प्रबल प्रेरणा से यह कार्य अत्यन्त द्रुतगति से प्रगति पर है। दनादन आगम प्रकाशित हो रहे हैं। आगममाला की लड़ी की कड़ी में विपाकसूत्र प्रकाशित हो रहा है। प्रस्तुत आगम के कुशल सम्पादक हैं _पंडितं श्रीरोशनलालजी. जो जैनदर्शन के अच्छे अभ्यासी हैं। वर्षों से श्रमण और श्रमणियों को का अभ्यास करा रहे हैं। प्रस्तुत आगम उन्होंने विस्तार में न जाकर बहुत ही संक्षेप में विवेचन प्रस्तुत किया। यह विवेचन संक्षेप में होने पर भी सारपूर्ण है। पं. प्रवर कलम कलाधर शोभाचन्द्रजी भारिल्ल की प्रतिभा का चमत्कार भी यत्र-तत्र निहारा जा सकता है। मुझे दृढ़ आत्मविश्वास है कि यह आगम जन-जन को प्रेरणदायी सिद्ध होगा। भौतिक भक्ति के युग में पलेपुसे मानवों को आत्यात्मिक चिन्तन प्रदान करेगा। -देवेन्द्रमुनि शास्त्री वागरेचा भवन गढ़सिवाना दि. ५६।१९८२ [४७]
SR No.003451
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_vipakshrut
File Size5 MB
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