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द्वितीय श्रुतस्कन्ध : सुखविपाक
प्रथम अध्ययन प्रस्तावना
१ तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे, गुणसिलए चेइए, सुहम्मे समोसढे। जम्बू जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी–जइ णं भंते! समणेमणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं अयमढे पन्नत्ते, सुहविवागाणं भन्ते! समणेणं जाव सम्पत्तेणं के अढे पन्नत्ते ?
तए णं से सुहम्मे अणगारे जंबुं अणगारं एवं वयासी एवं खलु जम्बू! समणेणं जाव सम्पत्तेणं सुहविवागाणं दस अज्झयणा पन्नत्ता, तं जहा—'
सुबाहू भद्दनंदी य सुजाए य सुवासवे। तहेव जिणदासे य धणवई य महब्बले ॥
भद्दनंदी महच्चंदे वरदत्ते तहेव य॥ १---उस काल तथा उस समय राजगृह नगर के अन्तर्गत गुणशील नामक चैत्य-उद्यान में अनगार श्री सुधर्मा स्वामी पधारे। उनकी पर्युपासना सेवा में संलग्न रहे हुए श्री जम्बू स्वामी ने प्रश्न किया-प्रभो ! यावत् मोक्ष रूप परम स्थिति को संप्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने यदि दुःखविपाक का यह (पूर्वोक्त) अर्थ प्रतिपादित किया, तो यावत् मुक्ति को प्राप्त श्रमण भगवान् महीर ने सुखविपाक का क्या अर्थ प्रतिपादित किया है ?
(विनयशील अन्तेवासी) आर्य जम्बू की इस जिज्ञासा के उत्तर में अनगार श्री सुधर्मा स्वामी जम्बू अनगार के प्रति इस प्रकार बोले हे जम्बू! यावत् निर्वाणप्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने सुखविपाक के दस अध्ययन प्रतिपादित किये हैं। वे इस प्रकार हैं
(१) सुबाहु, (२) भद्रनंदी, (३) सुजात, (४) सुवासव, (५) जिनदास, (६) धनपति, (७) महाबल, (८) भद्रनंदी, (९) महचंद्र और (१०) वरदत्त।
२–'जइ णं भंते! समणेणं जाव संपत्तेणं सुहविवागाणं दस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स सुहविवागाणं जाव संपत्तेणं के अटे पन्नत्ते ?' तए णं से सुहम्मे अणगारे जबुं अणगारं एवं वयासी
२—हे भदन्त ! यावत् मोक्षसम्प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने यदि सुखविपाक के सुबाहुकुमार आदि दश अध्ययन प्रतिपादित किये हैं तो हे भगवन् ! मोक्ष को उपलब्ध श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने सुखविपाक के प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कथन किया है?
इस प्रश्न के उत्तर में श्री सुधर्मा स्वामी ने श्री जम्बू अनगार के प्रति इस प्रकार कहा