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________________ [ ११३ दशम अध्ययन ] भगवान् कहते हैं—हे गौतम! इस प्रकार रानी अञ्जुश्री अपने पूर्वोपार्जित पाप कर्मों के फल का उपभोग करती हुई जीवन व्यतीत कर रही है । भविष्यत् वृत्तान्त १०– 'अंजू णं भंते! देवी इओ कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिइ ? कहिं उववज्जिहि ।' 'गोयमा! अंजू णं देवी नउई वासाइं परमाउयं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इम रयणप्पभाए पुढवीए नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जिहि । एवं संसारो जहा पढमे तहा नेयव्वं जाव वणस्सइ। सा णं तओ अनंतरं उव्वट्ठित्ता सव्वओभद्दे नयरे मयूरत्ताए पच्चायाहिइ । से णं तत्थ साउणिएहिं वहिए समाणे तत्थेव सव्वओभद्दे नयरे सेट्ठिकुलंसि पुत्तत्ताए पच्चायाहि । से णं तत्थ उम्मुक्कबालभावे तहारूवाणं थेराणं अंतिए केवलं बोहिं बुज्झिहिइ । पव्वज्जा | सोहम्मे ।' 'से णं ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं कहिं गच्छिहिइ ? कहिं उववज्जिहिइ ? • गोयमा ! महाविदेहे जहा पढमे जाव सिज्झिहिइ, जाव अंतं काहिइ । एवं खलु जम्बू! समणेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं दसमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते । सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति बेमि । १० – गौतम स्वामी ने प्रश्न किया— अहो भगवन्! अजू देवी मृत्यु का समय आने पर काल करके कहाँ जायेगी ? कहाँ उत्पन्न होगी ? भगवान् ने उत्तर दिया— हे गौतम! अजू देवी ९० वर्ष की परम आयु को भोग कर काल मास में काल करके इस रत्नप्रभा नामक पृथ्वी के नारकों में नारकी रूप से उत्पन्न होगी । उसका शेष संसारपरिभ्रमण प्रथम अध्ययन की तरह जानना चाहिये । यावत् वनस्पति-गत निम्बादि कटुवृक्षों तथा कटु दुग्ध वाले अर्क आदि पौधों में लाखों बार उत्पन्न होगी। वहाँ की भव- स्थिति को पूर्ण कर इसी सर्वतोभद्र नगर में मयूर के रूप में जन्म लेगी । वहाँ वह मोर व्याधों के द्वारा मारा जाने पर सर्वतोभद्र नगर के ही एक श्रेष्ठिकुल में पुत्र रूप से उत्पन्न होगा । वहाँ बालभाव को त्याग कर, युवावस्था को प्राप्त कर, विज्ञान की परिपक्व अवस्था को प्राप्त करता हुआ वह तथारूप स्थविरों से बोधिलाभ - सम्यक्त्व को प्राप्त करेगा । तदनन्तर प्रव्रज्या —— दीक्षा ग्रहण कर मृत्यु के बाद सौधर्म देवलोक में उत्पन्न होगा । गौतम—भगवन्! देवलोक की आयु तथा स्थिति पूर्ण हो जाने के बाद वह कहाँ जायेगा ? कहाँ उत्पन्न होगा ? भगवान् गौतम ! महाविदेह क्षेत्र में जायेगा । वहाँ उत्तम कुल में जन्म लेगा । जैसा कि प्रथम अध्ययन में वर्णित है यावत् सिद्ध बुद्ध सब दुःखों का अन्त करेगा । हे जम्बू ! इस प्रकार श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने दुःखविपाक के दशम अध्ययन का यह अर्थ प्रतिपादन किया है। जम्बू–भगवन्! आपका यह कथन सत्य, परम सत्य, परम- परम सत्य है । ॥ दशम अध्ययन सम्पूर्ण ॥ ॥ दुःखविपाकीय प्रथम श्रुतस्कन्ध समाप्त ॥
SR No.003451
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_vipakshrut
File Size5 MB
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