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अष्टम अध्ययन ]
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गोयमा ! सत्तरिवासाई परमाउयं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए। संसारो तहेव, जाव पुढवीए । तओ हत्थिणाउरे नयरे मच्छत्ताए उववज्जिहिइ । सेणं तओ मच्छिएहिं जीवियाओ ववरोविए तत्थेव सेट्ठिकुलंसि उववज्जिहिइ, बोही, सोहम्मे कप्पे, महाविदेहे वासे सिज्झिहि । निक्खेवो ।
१५ – गौतम स्वामी ने प्रश्न किया— अहो भगवन्! शौरिकदत्त मत्स्यबन्ध-मच्छीमार यहाँ से कालमास में काल करके कहाँ जायेगा ? कहाँ उत्पन्न होगा?
भगवान् ने उत्तर दिया- हे गौतम! ७० वर्ष की परम आयु को भोगकर कालमास में काल करके रत्नप्रभा नामक प्रथम नरक में उत्पन्न होगा। उसका अवशिष्ट संसार - भ्रमण पूर्ववत् ही समझ लेना चाहिये यावत् पृथ्वीकाय आदि में लाखों बार उत्पन्न होगा । वहाँ से निकलकर हस्तिनापुर में मत्स्य होगा । वहाँ मच्दीमारों के द्वारा वध को प्राप्त होकर वहीं हस्तिनापुर में एक क्षेष्ठिकुल में जन्म लेगा । वहाँ सम्यक्त्व की उसे प्राप्ति होगी। वहाँ से मकर सौधर्म देवलोक में देव होगा। वहाँ से चय कर महाविदेह क्षेत्र में जन्मेगा, चारित्र ग्रहण कर उसके सम्यक् आराधन से सिद्ध पद को प्राप्त करेगा ।
निक्षेप उपसंहारपूर्ववत् समझ लेना चाहिये।
॥ अष्टम अध्ययन समाप्त ॥