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[विपाकसूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध रखनेवाला तथा इन्हीं पापों को सर्वोत्तम आचरण मानने वाला वह श्रीद रसोइया अत्यधिक पापकर्मों का उपार्जन कर ३३सौ वर्ष की परम आयु को भोग कर कालमास में काल करके छठे नरक में उत्पन्न हुआ।
९–तए णं सा समुद्ददत्ता भारिया जायनिंदूयावि होत्था। जाया जाया दारगा विणिहायमावन्जंति। जहा गंगदत्ताए चिन्ता, आपुच्छणा, ओवाइयं दोहला जाव' दारगं पयाया, जाव 'जम्हा णं अम्हे इमे दारए सोरियस्स जक्खस्स ओवाइयलद्धे, तम्हा णं होउ अम्हं दारए सोरियदत्ते नामेणं।तए णं से सोरियदत्ते दारए पंचधाई जाव उम्सुक्कबालभावे विन्नायपरिणयमत्त जोव्वणगमुणप्पत्ते यावि होत्था।'
९—उस समय वह समुद्रदत्ता भार्या मृतवत्सा थी। उसके बालक जन्म लेने के साथ ही मर जाया करते थे। उसने गंगदत्ता की ही तरह विचार किया, पति की आज्ञा लेकर, मान्यता मनाई और गर्भवती हुई। दोहद की पूर्ति कर बालक को जन्म दिया। 'शौरिक यक्ष की मनौती मनाने के कारण हमें यह बालक उपलब्ध हुआ है' ऐसा कहकर माता पिता ने उसका नाम 'शौरिकदत्त' रक्खा। तदनन्तर पांच धायमाताओं से परिगृहीत, बाल्यावस्था को त्यागकर विज्ञान की परिपक्व अवस्था से सम्पन्न हो वह शौरिकदत्त युवावस्था को प्राप्त हुआ।
१०—तए णं से समुद्ददत्ते अन्नया कयाइ कालधम्मुणा संजुत्ते। तए णं से सारियदत्ते बहूहिं मित्त-नाइ रोयमाणे समदत्तस्स नीहरणं करेड,लोइयाई मयकिच्चाई करेड़। अन्नया कयाइ सयमेव मच्छंधमहत्तरगत्तं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ। तए णं से सोरियदारए मच्छंधे जाए, अहम्मिए जावर दुप्पडियाणंदे।
१०—तदनन्तर किसी समय समुद्रदत्त कालधर्म को प्राप्त हो गया। रुदन आक्रन्दन व विलाप करते हुए शौरिकदत्त बालक ने अनेक मित्र-ज्ञाति-स्वजन परिजनों के साथ समुद्रदत्त का निस्सरण किया, दाहकर्म व अन्य लौकिक क्रियाएं की। तत्पश्चात् किसी समय वह स्वयं ही मच्छीमारों का मुखिया बन कर रहने लगा। अब वह मच्छीमार हो गया जो महा अधर्मी यावत् दुष्प्रत्यानन्द अति कठिनाई से प्रसन्न होने वाला था।
११–तए णं तस्स सोरियदत्तस्स मच्छंधस्स बहवे पुरिसा दिन्नभइभत्तवेयणा कल्लाकल्लि एगट्ठियाहिं जउणं महाणइं ओगाहेंति, ओगाहित्ता बहूहिं दहगालणेहि य दहमलणेहि य दहमद्दणेहि य दहमहणेहि य दहवहणेहि य दहपवहणेहि य अयंचुलेहि य पंचपुलेहि य मच्छे मच्छपुच्छेहि य जंभाहि य तिसिराहि य भिसिराहि य धिसराहि य विसराहि य हिल्लिरीहि य झिल्लिरीहि य लल्लिरीहि य जालेहि य गलेहि य कूडपासेहि य वक्कबंधेहि य सुत्तबन्धणेहि य वालबन्धणेहि य बहवे सण्हमच्छे जाव पडागाइपडागे य गिण्हंति। गेण्हित्ता एगट्ठियाओ भरेंति, भरित्ता कूलं गाहेंति, गाहित्ता मच्छखलए करेंति, करित्ता आयवंसि दलयंति। अन्ने य से बहवे पुरिसादिनभइभत्तवेयणा आयवतत्तएहिं मच्छेहि सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिएहि य रायमग्गंसि वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति। अप्पणा वि य णं से सोरियदत्ते बहूहि सण्हमच्छेहि १. देखिए सप्तम अध्ययन २. तृतीय. अ., सूत्र-४ ३. प्रज्ञापनासूत्र, पद १.