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सप्तम अध्ययन]
[८७ ___सागरदत्त सार्थवाह भी दोहदपूर्ति के लिए गंगदत्ता भार्या को आज्ञा दे देता है।
१४–तए णं सा गंगदत्ता सागरदत्तेणं सत्थवाहेणं अब्भणुन्नाया समाणी विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता तं विउलं असणं ४ सुरं च ६ सुबहुं पुफ्फवत्थगंधमल्लालंकारं परिगिण्हावेइ परिगिण्हावेत्ता बहूहिं जाव ण्हाया कयबलिकम्मा जेणेवं उंबरदत्तस्स जक्खाययणे जाव धूवं डहेइ, डहेत्ता जेणेव पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ। तए णं ताओ मित्त० जाव महिलाओ गंगदत्तं सत्थवाहिं सव्वालंकारविभूसियं करेंति। तए णं सा गंगदत्ता भारिया ताहिं मित्तनाइहिं अन्नाहिं बहूहिं नगरमहिलाहिं सद्धिं तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं सुरं च महुं च मेरगं च जाइं च सीधुं च पसण्णं च आसाएमाणे दोहलं विणेइ, विणेत्ता, जामेव दिसिं पाउब्भूया तामेव दिसिं पडिगया। सा गंगदत्ता सत्थवाही संपुण्णदोहला तं गब्भं सुहंसुहेण परिवहइ।
१४-सागरदत्त सार्थवाह से आज्ञा प्राप्त कर गंगदत्ता पर्याप्त मात्रा में अशनादिक चतुर्विध आहार तैयार करवाती है और उपस्कृत आहार एवं छह प्रकार के मदिरादि पदार्थ तथा बहुत सी पुष्पादि पूजासामग्री को लेकर मित्र, ज्ञातिजन आदि की तथा अन्य महिलाओं को साथ लेकर यावत् स्नान तथा अशुभ स्वप्नादि के फल को विनष्ट करने के लिए मस्तक पर तिलक व अन्य माङ्गलिक अनुष्ठान करके उम्बरदत्त यक्ष के आयतन में आ जाती है। वहाँ पहिले की ही तरह पूजा करती व धूप जालती है। तदनन्तर पुष्करिणी-बावड़ी पर आ जाती है, वहाँ पर साथ में आने वाली मित्र, ज्ञाति आदि महिलाएं गंगदत्ता को सर्व अलंकारों से विभषित करती हैं, तत्पश्चात उन मित्रादि महिलाओं तथा अन्य महिलाओं के साथ उस विपुल अशनादिक तथा षड्विध सुरा आदि का आस्वादन करती हुई गंगदत्ता अपने दोहद—मनोरथ को परिपूर्ण करती है। इस तरह दोहद को पूर्ण कर वह वापिस अपने घर आ जाती है।
तदनन्तर सम्पूर्णदोहदा, सन्मानितदोहदा, विनीतदोहदा, व्युच्छिन्नदोहदा, सम्पन्न दोहदा वह गंगदत्ता उस गर्भ को सुखपूर्वक धारण करती है।
१५–तए णं सा गंगदत्ता भारिया नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं जाव दारगं पयाया। ठिइवडिया जाव नामधेज करेंति-'जम्हा णं इमे दारए उबरदत्तस्स जक्खस्स ओवाइयलद्धए, तं होउ णं दारए उबरदत्ते नामेणं।' तए णं से उंबरदत्ते दारए पंचधाईपरिग्गहिए परिवड्डइ।
१५-तत्पश्चात् नव मास परिपूर्ण हो जाने पर उस गंगदत्ता ने एक बालक को जन्म दिया। माता
थतिपतिता-पुत्र जन्म सम्बन्धी उत्सव विशेष मनाया। फिर उसका नामकरण संस्कार किया, 'यह बालक क्योंकि उम्बरदत्त यक्ष की मान्यता मानने से जन्मा है, अत: इसका नाम भी उम्बरदत्त' ही हो। तदनन्तर उम्बरदत्त बालक पाँच धायमाताओं द्वारा गृहीत होकर वृद्धि को प्राप्त करने लगा।
___ १६—तए णं से सागरदत्ते सत्थवाहे जहा विजयमित्ते कालधम्मुणा संजुत्ते, गंगदत्ता वि। उंबरदत्ते निच्छूढे जहा उज्झियए। तए णं तस्स उंबरदत्तस्स दारगस्स अन्नया कयाइ सरीरगंसि जमगसमगमेव सोलस रोगायंका पाउब्भूया।तं जहा—सासे, कासे जाव' कोढे।तए णं से उंबरदत्ते दारए सोलसहिं रोगायंकेहिं अभिभूए समाणे कच्छुल्ले जाव देह बलियाए वित्तिं कप्पेमाणे
१. प्र. अ., सू.
२. सप्तम अ., सूत्र ४