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________________ षष्ठ अध्ययन नन्दिवर्द्धन प्रस्तावना १–उक्खेवो—जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं पंचमस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते, छट्ठस्स णं भंते। समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पण्णत्ते? तए णं सुहम्मे अणगारे जम्बू-अणगारं एवं वयासी १-उत्क्षेप जम्बू स्वामी ने प्रश्न किया-भगवन् ! यदि यावत् मुक्तिप्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने पांचवें अध्ययन का यह अर्थ कहा, तो षष्ठ अध्ययन का भगवान् ने क्या अर्थ कहा है? २——एवं खलु जम्बू! तेणं कालेणं तेणं समएणं महुरा नामं नयरी होत्था। भंडीरे उज्जाणे। सुदंसणे जक्खे। सिरिदामे राया। बन्धुसिरी भारिया। पुत्ते नंदिबद्धणे कुमारे अहीण (पडिपुण्ण पंचिंदियशरीरे ) जाव जुवराया। २—हे जम्बू! उस काल तथा उस समय में मथुरा नाम की नगरी थी। वहाँ भण्डीर नाम का एक उद्यान था। सुदर्शन नामक यक्ष का उसमें आयतन था। वहाँ श्रीदाम नामक राजा राज्य करता था, उसकी बन्धुश्री नाम की रानी थी। उनका सर्वाङ्ग-सम्पन्न युवराज पद से अलंकृत नन्दिवर्द्धन नाम का सर्वांगसुन्दर पुत्र था। ३ तस्स सिरिदामस्स सुबन्धूनामं अमच्चे होत्था।साम-भेय-दण्ड-उवप्पयाणनीतिकुसले, सुपउत्तनयविहण्णू। तस्स णं सुबंधुस्स अमच्चस्स बहुमित्तापुत्ते नामंदारए होत्था, अहीण। तस्स णं सिरिदामस्स रन्नो चित्ते नामं अलंकारिए होत्था। सिरिदामस्स रण्णो चित्ते बहुविहं अलंकारियकम्म करेमाणे सव्वट्ठाणेसु य सव्वभूमियासु य, अंतेउरे य, दिनवियारे यावि होत्था। ३-श्रीदाम नरेश का सुबन्धु नामक मन्त्री था, जो साम, दण्ड, भेद-उपप्रदान में कुशल था—नीतिनिपुण था। उस मन्त्री के बहुमित्रापुत्र नामक सर्वाङ्गसम्पन्न व रूपवान् बालक था। श्रीदाम नरेश का, चित्र नामक अलंकारिक (केशादि को अलंकृत करने वाला नाई) था। वह राजा का अनेकविध, क्षौरकर्म करता हुआ राजा की आज्ञा से सर्वस्थानों, सर्व-भूमिकाओं तथा अन्तःपुर में भी, बेरोक-टोक, आवागमन करता रहता था। ४ तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे।परिसा निग्गया,राया निग्गओ जाव परिसा पडिगया। ४—उस काल उस समय में मथुरा नगरी में भगवान् महावीर स्वामी पधारे। परिषद् व राजा
SR No.003451
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_vipakshrut
File Size5 MB
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