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________________ ६४] [विपाकसूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध से णं तओ अणंतरं उव्वट्टित्ता वाणारसीए नयरीए मच्छत्साए उववज्जिहिइ। से णं तत्थ मच्छबन्धिएहिं वहिए तत्थेव वाणारसीए नयरीए सेट्ठिकुलंसि पुत्तत्ताए पच्चायाहिइ।बोहिं, पवज्जा, सोहम्मे कप्पे, महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ। निक्खेवो। १४—तदनन्तर शकट कुमार बाल्यभाव को त्याग कर यौवन को प्राप्त करेगा। सुदर्शना कुमारी भी बाल्यावस्था पार करके विशिष्ट ज्ञानबुद्धि की परिपक्वता को प्राप्त करती हुई युवावस्था को प्राप्त होगी। वह रूप, यौवन व लावण्य में उत्कृष्ट श्रेष्ठ व सुन्दर शरीर वाली होगी। तदनन्तर सुदर्शना के रूप, यौवन और लावण्य की सुन्दरता में मूछित होकर शकट कुमार अपनी बहिन सुदर्शना के साथ ही मनुष्य सम्बन्धी प्रधान कामभोगों का सेवन करता हुआ जोवन व्यतीत करेगा। तत्पश्चात् किसी समय वह शकट कुमार स्वयमेव कूटग्राहित्व को प्राप्त कर विचरण करेगा। वह कटगाह (कपट से जीवों को फँसाने वाला मारने वाला) बना हआ शकट महाअधर्मी एवं दुष्प्रत्यानन्द होगा। इन अधर्म-प्रधान कर्मों से बहत से पापकर्मों को उपार्जित कर मत्यसमय में मर कर रत्नप्रभा नाम प्रथम नरक में नारकी रूप से उत्पन्न होगा। उसका संसार-भ्रमण भी पूर्ववत् (इक्काइ, उज्झित आदि के समान) जान लेना चाहिए यावत् वह पृथ्वीकाय आदि में लाखों-लाखों बार उत्पन्न होगा। तदनन्तर वहाँ से निकलकर वह सीधा वाराणसी नगरी में मत्स्य के रूप में जन्म लेगा। वहाँ पर मत्स्यघातकों के द्वारा वध को प्राप्त होकर फिर उसी वाराणसी नगरी में एक श्रेष्ठिकुल में पुत्ररूप से उत्पन्न होगा। वहाँ सम्यक्त्व एवं अनगार धर्म को प्राप्त करके सौधर्म नामक प्रथम देवलोक में देव होगा। वहां से च्युत हो, महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेगा। वहाँ साधुवृत्ति का सम्यक्तया पालन करके सिद्ध, बुद्ध होगा, समस्त कर्मों और दु:खों का अन्त करेगा। ॥ चतुर्थ अध्ययन समाप्त॥
SR No.003451
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_vipakshrut
File Size5 MB
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