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________________ [ ६१ चतुर्थ अध्ययन ] इहेव साहंजणीए सुभद्दस्स सत्थवाहस्स भद्दाए भारियाए कुच्छिसि पुत्तताए उववन्ने । तणं सा भद्दा सत्थवाही अन्नया कयाइ नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दारगं पयाया तणं तं दारगं अम्मापियरो जायमेत्तं चेव सगडस्स हेट्ठाओ ठावेंति । दोच्चं पि गिण्हावेंति, अणुपुव्वेणं सारक्खेंति, संगोवेंति, संवड्ढेंति, जहा उज्झियए, जाव जम्हा णं अम्हं इमे दारए जायमेत्ते चेव सगस्स ट्ठा ठाविए, तम्हा णं होउ णं अम्हं एस दारए 'सगडे नामेणं । सेसं जहा उज्झियए । सुभद्दे लवणसमुद्दे कालगए, माया वि कालगया। से वि सयाओ गिहाओ निच्छूढे । तए णं से सगडे दारए सयाओ गिहाओ निच्छूढे समाणे सिंघाडग तहेव जाव सुदरिसणाए गणियाए सद्धिं संपलग्गे यावि होत्था । ९ -- तदनन्तर उस सुभद्र सार्थवाह की भद्रा नाम की भार्या जातनिन्दुका (जिसके बच्चे जन्म लेते ही मर जाते हों ) थी। उसके उत्पन्न होते हुए बालक मृत्यु को प्राप्त हो जाते थे। इधर छणिक नामक छागलिक कसाई का जीव चतुर्थ नरक से निकलकर सीधा इसी साहंजनी नगरी में सुभद्र सार्थवाह को भद्रा नाम की भार्या के गर्भ में पुत्ररूप में उत्पन्न हुआ। लगभग नवमास परिपूर्ण हो जाने पर किसी समय भद्रा नामक भार्या ने बालक को जन्म दिया। उत्पन्न होते ही माता-पिता ने उस बालक को शकट-छकड़े-गाड़े के नीचे स्थापित कर दिया— रख दिया और फिर उठा लिया । उठाकर यथाविधि संरक्षण, संगोपन व संवर्द्धन किया। यावत् यथासमय उसके माता-पिता ने कहा— उत्पन्न होते ही हमारा यह बालक छकड़े के नीचे स्थापित किया गया था, अतः इसका नाम 'शकट' ऐसा नामाभिधान किया जाता है—उसका नाम शकट रख दिया। शकट का शेष जीवन उज्झित की ही तरह समझ लेना चाहिए । इधर सुभद्र सार्थवाह लवणसमुद्र में कालधर्म को प्राप्त हुआ और शकट की माता भद्रा भी मृत्यु को प्राप्त हो गयी । तब शकट कुमार को राजपुरुषों के द्वारा घर से निकाल दिया गया। अपने घर से निकाले जाने पर शकट कुमार साहंजनी नगरी के श्रृंगाटक (त्रिकोण मार्ग) आदि स्थानों में भटकता रहा तथा जुआरियों के अड्डों तथा शराबघरों में घूमने लगा। किसी समय उसकी सुदर्शना गणिका के साथ गाढ़ प्रीति हो गयी। (जैसी उज्झित की कामध्वजा के साथ हो गयी थी । ) १० – तए णं से सुसेणे अमच्चे तं सगडं दारगं अन्नया कयाइ सुदरिसणाए गणियाए गिहाओ निच्छुभावेइ, निच्छुभावेत्ता सुदरिसणं गणियं अब्भितरियं ठावेइ, ठावेत्ता सुदरिसणाए गणियाए सद्धिं उरालाई माणुस्सगाई भोगमभोगाई भुंजमाणे विहरइ । १० – तदनन्तर सिंहगिरि राजा का अमात्य – मन्त्री सुषेण किसी समय उस शकट कुमार को सुदर्शना वेश्या के घर से निकलवा देता है और सुदर्शना गणिका को अपने घर में पत्नी के रूप में रख लेता है । इस तरह घर में पत्नी के रूप में रखी हुई सुदर्शना के साथ मनुष्य सम्बन्धी उदार विशिष्ट कामभोगों को यथारुचि उपभोग करता हुआ समय व्यतीत करता है । ११ एणं से सगडे दारए सुदरिसणाए गणियाए गिहाओ निच्छुभेमाणे सुदरिसणाए गणियाए मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववण्णे अण्णत्थ कत्थइ सुइं च रइं च धिदं च अलभमाणे
SR No.003451
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_vipakshrut
File Size5 MB
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