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तिचयोनि के दुःख ]
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प्राक्रमण करते हैं । मयूर सर्प को मार डालता है । इस प्रकार अनेक तिर्यंचों में जन्मजात वैरभाव होता है । नारक जीव नरक से निकल कर दुःखमय तिर्यंचयोनि में जन्म लेते हैं । वहाँ उन्हें विविध प्रकार के दुःख भोगने पड़ते हैं । तियंचयोनि के दुःख ३४- किं ते ?
सह- तरहा- खुह-वेयण-अप्पईकार- प्रडवि- जम्मणणिच्च भडव्विग्नवास- जग्गण-वह-बंधणताडण- अंकण - णिवायण- अट्टिभंजण-णासाभेय- प्पहारवृमण- छविच्छेयण-अभिश्रोग- पावण-कसंकुसारशिवाय दमणाणि वाहणाणि य ।
३४ - प्रश्न - वे तिर्यचयोनि के दुःख कौन-से हैं ?
उत्तर - शीत — सर्दी, उष्ण- गर्मी, तृषा-प्यास, क्षुधा - भूख, वेदना का प्रतीकार, अटवी - जंगल में जन्म लेना, निरन्तर भय से घबड़ाते रहना, जागरण, वध - मारपीट सहना, बन्धन - बांधा जाना, ताड़न, दागना - लोहे की शलाका, चीमटा आदि को गर्म करके निशान बनाना -- डामना, गड़हे आदि में गिराना, हड्डियाँ तोड़ देना, नाक छेदना, चाबुक, लकड़ी आदि के प्रहार सहन करना, संताप सहना, छविच्छेदन - अंगोपांगों को काट देना, जबर्दस्ती भारवहन आदि कामों में लगना, कोड़ा - चाबुक, अंकुश एवं प्रार-डंडे के अग्र भाग में लगी हुई नोकदार कील आदि से दमन किया जाना, भार वहन करना आदि आदि ।
विवेचन - शास्त्रकार पूर्व हो उल्लेख कर चुके हैं कि तिर्यंचगति के कष्ट जगत् में प्रकट हैं, प्रत्यक्ष देखे-जाने जा सकते हैं । प्रस्तुत सूत्र में उल्लिखित दुःख प्रायः इसी कोटि के हैं । ये दुःख पंचेन्द्रिय तिर्यंचों सम्बन्धी हैं । तिर्यंचों में कोई पंचेन्द्रिय होते हैं, कोई चार, तीन, दो या एक इन्द्रिय वाले होते हैं । चतुरिन्द्रिय प्रादि के दुःखों का वर्णन आगे किया जाएगा ।
मनुष्य सर्दी-गर्मी से अपना बचाव करने के लिए अनेकानेक उपायों का आश्रय लेते हैं । सर्दी से बचने के लिए अग्नि का, बिजली के चूल्हे आदि का, गर्म – ऊनी या मोटे वस्त्रों का, रुईदार रजाई आदि का मकान आदि का उपयोग करते हैं । गर्मी से बचाव के लिए भी उनके पास अनेक साधन हैं और वातानुकूलित भवन आदि भी बनने लगे हैं । किन्तु पशु-पक्षियों के पास इनमें से कौनसे साधन हैं ? बेचारे विवश होकर सर्दी-गर्मी सहन करते हैं ।
भूख-प्यास की पीड़ा होने पर वे उसे असहाय होकर सहते हैं । अन्न पानी मांग नहीं सकते । जब बैल बेकाम हो जाता है, गाय-भैंस दूध नहीं देती, तब अनेक मनुष्य उन्हें घर से छुट्टी दे देते हैं । वे गलियों में भूखे-प्यासे आवारा फिरते हैं । कभी- कभी पापी हिंसक उन्हें पकड़ कर कत्ल करके उनके मांस एवं अस्थियों को बेच देते हैं ।
कतिपय पालतू पशुओं को छोड़ कर तिर्यचों की वेदना का प्रतीकार करने वाला कौन है ! कौन जंगल में जाकर पशु-पक्षियों के रोगों की चिकित्सा करता है !
तिर्यंचों में जो जन्म-जात वैर वाले हैं, उन्हें परस्पर एक-दूसरे से निरन्तर भय रहता है, शशक, हिरण आदि शिकारियों के भय से ग्रस्त रहते हैं और पक्षी व्याधों-वहेलियों के डर से घबराते हैं । इसी प्रकार प्रत्राण - प्रशरण एवं साधनहीन होने के कारण सभी पशु-पक्षी निरन्तर भयग्रस्त बने रहते हैं ।