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________________ पापियों का पापकर्म, जलचर, स्थलचर चतुष्पद जीव ] पापियों का पापकर्म ४- तं च पुण करेंति केइ पावा श्रसंजया श्रविरया प्रणिहुयपरिणामदुप्पयोगा पाणवहं भयंकरं बहुविहं बहु पगारं परदुक्खुप्पायणसत्ता इमेहि तस्थावरेहिं जीवेहिं पडिणिविट्ठा । कि ते ? १३ ४ - कितने ही पातकी, संयमविहीन, तपश्चर्या के अनुष्ठान से रहित, अनुपशान्त परिणाम वाले एवं जिनके मन, वचन और काम का व्यापार दुष्ट है, जो अन्य प्राणियों को पीड़ा पहुँचाने में प्रासक्त रहते हैं तथा त्रस और स्थावर जीवों की रक्षा न करने के कारण वस्तुतः जो उनके प्रति द्वेषभाव वाले हैं, वे अनेक प्रकारों से, विविध भेद-प्रभेदों से भयंकर प्राणवध - हिंसा किया करते हैं । वे विविध भेद-प्रभेद से कैसे हिंसा करते हैं ? जलचर जीव ५- पाठोण - तिमि - तिमिंगल-प्रणेगशस - विविहजातिमंडुक्क - दुविहकक्छभ नक्क' - मगर - दुविहगाह - दिलवेढय-मंडुय सीमागार - पुलुय सु सुमार- बहुप्पगारा जलयरविहाणा कते य एवमाई । ५- पाठीन - एक विशेष प्रकार की मछली, तिमि - बड़े मत्स्य, तिमिघल - महामत्स्य, अनेक प्रकार की मछलियाँ, अनेक प्रकार के मेंढक, दो प्रकार के कच्छप – प्रस्थिकच्छप और मांसकच्छप, मगर - सुडामगर एवं मत्स्यमगर के भेद से दो प्रकार के मगर, ग्राह - एक विशिष्ट जलजन्तु, दिलिवेष्ट--पूंछ से लपेटने वाला जलीय जन्तु, मंडूक, सीमाकार, पुलक आदि ग्राह के प्रकार, सुमार, इत्यादि अनेकानेक प्रकार के जलचर जीवों का घात करते हैं । विवेचन-पापासक्त करुणाहीन एवं अन्य प्राणियों को पीड़ा पहुँचाने में प्रानन्द का अनुभव करने वाले पुरुष जिन-जिन जीवों का घात करते हैं, उनमें से प्रस्तुत पाठ में केवल जलीय जीवों का उल्लेख किया गया है । जलीय जीव इतनी अधिक जातियों के होते हैं कि उन सब के नामों का निर्देश करना कठिन ही नहीं, असंभव सा है । उन सब का नामनिर्देश आवश्यक भी नहीं है । अतएव उल्लिखित नामों का मात्र उपलक्षण ही समझना चाहिए। सूत्रकार ने स्वयं ही 'एवमाई' पद से यह लक्ष्य प्रकट कर दिया है । स्थलचर चतुष्पद जीव ६–कुरंग-रुरु-सरस- चमर-संबर- उरब्भ-समय- पसय-गोण- रोहिय- हय-गय- खर- करभ खग्ग वार - गवय- विग - सियाल - कोल- मज्जार-कोलसुणह- सिरियंदलगावत्त- कोकंतिय- गोकण्ण-मिय-महिसविग्ध - छगल-दीविय -साण-तरच्छ अच्छ-भल्ल सद्दल-सीह- चिल्लल-चउप्पयविहाणाकए य एवमाई । ६ - कुरंग और रुरु जाति के हिरण, सरभ - अष्टापद, चमर - नील गाय, संबर - सांभर, उरभ्र—मेढा, शशक- खरगोश, पसय – प्रशय - वन्य पशुविशेष, गोण - बैल, रोहित - पशुविशेष, घोड़ा, हाथी, गधा, करभ – ऊँट, खड्ग - गेंडा, वानर, गवय - रोझ, वृक – भेड़िया, शृगाल - सियारगीदड़, कोल - शूकर, मार्जार - बिलाव - बिल्ली, कोलशुनक – बड़ा शूकर, श्रीकंदलक एवं प्रवर्त १. पाठान्तर— नक्कचक्क ।
SR No.003450
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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