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सुवर्णगुटिका, रोहिणी]
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बैठे-बैठे उसके मन में विचार आया- "मुझे सुन्दर रूप तो मिला; लेकिन बिना पति के सुन्दर रूप भी किस काम का? पर किसे पति बनाऊँ ? राजा को तो बनाना ठीक नहीं; क्योंकि एक तो यह बूढ़ा है, दूसरे, यह मेरे लिये पितातुल्य है । अतः किसी नवयुवक को ही पति बनाना चाहिये । सोचते-सोचते उसकी दृष्टि में उज्जयिनी का राजा चन्द्रप्रद्योत ऊँचा । फिर क्या था ? उसने मन में चन्द्रप्रद्योत का चिन्तन करके दूसरी गोली निगल ली । गोली के अधिष्ठाता देव के प्रभाव से उज्जयिनी-नृप चन्द्रप्रद्योत को स्वप्न में दासी का दर्शन हुआ । फलतः सुवर्णगुटिका से मिलने के लिये वह आतुर हो गया। वह शीघ्र ही गंधगज नामक उत्तम हाथी पर सवार होकर वीतभय नगर में पहुँचा । सुवर्णगुटिका तो उससे मिलने के लिये पहले से ही तैयार बैठी थी। चन्द्रप्रद्योत के कहते ही वह उसके साथ चल दी।
प्रातःकाल राजा उदयन उठा और नित्य-नियमानुसार अश्वशाला आदि का निरीक्षण करता हुआ हस्तिशाला में आ पहुँचा । वहाँ सब हाथियों का मद सूखा हुआ देखा तो वह आश्चर्य में पड़ गया । तलाश करते-करते राजा को एक गजरत्न के मूत्र की गन्ध आ गई । राजा ने शीघ्र ही जान लिया कि यहाँ गंधहस्ती पाया है । उसी के गन्ध से हाथियों का मद सूख गया। ऐसा गंधहस्ती सिवाय चन्द्रप्रद्योत के और किसी के पास नहीं है। फिर राजा ने यह भी सुना कि सुवर्णगुटिका दासी भी गायब है । अतः राजा को पक्का शक हो गया कि चन्द्रप्रद्योत राजा ही दासी को भगा ले गया है। राजा उदयन ने रोषवश उज्जयिनी पर चढ़ाई करने का विचार कर लिया । परन्तु मंत्रियों ने समझाया-"महाराज ! चन्द्रप्रद्योत कोई साधारण राजा नहीं है। वह बड़ा बहादुर और तेजस्वी है । केवल एक दासी के लिये उससे शत्रुता करना बुद्धिमानी नहीं है।" परन्तु राजा उनकी बातों से सहमत न हुआ और चढ़ाई करने को तैयार हो गया। राजा ने कहा-"अन्यायी अत्याचारी और उद्दण्ड को दण्ड देना मेरा कर्तव्य है।" अन्त में यह निश्चय हुआ कि 'दस मित्र राजामों को ससैन्य साथ लेकर उज्जयिनी पर चढ़ाई की जाए। ऐसा ही हुआ । अपनी अपनी सेना लेकर दस राजा उदयन नृप के दल में शामिल हुए । अन्ततः महाराज उदयन ने उज्जयिनी पर प्राक्रमण किया । बड़ी मुश्किल से उज्जयिनी के पास पहुँचे । चन्द्रप्रद्योत यह समाचार सुनते ही विशाल सेना लेकर युद्ध करने के लिये मैदान में प्रा डटा । दोनों में घमासान युद्ध हुआ । राजा चन्द्रप्रद्योत का हाथी तीव्रगति से मंडलाकार घूमता हुआ विरोधी सेना को कुचल रहा था। उसके मद के गंध से ही विरोधी सेना के हाथी भाग खड़े हुए । अतः उदयन की सेना में कोलाहल मच गया। यह देख कर रथारूढ़ उदयन ने गंधहस्ती के पैर में खींच कर तीक्ष्ण बाण मारा । हाथी वहीं धराशायी हो गया और उस पर सवार चन्द्रप्रद्योत भी नीचे पा गिरा। अत: सब राजाओं ने मिलकर उसे जीते-जी पकड लिया। राजा उदयन ने उसके ललाट पर 'दासीपति' शब्द अंकित कर अन्ततः उसे क्षमा कर दिया।
सचमुच सुवर्णगुटिका के लिये जो युद्ध हुआ, वह परस्त्रीगामी कामो चन्द्रप्रद्योत राजा की रागासक्ति के कारण हुआ। रोहिणी
अरिष्टपुर में रुधिर नामक राजा राज्य करता था, उसकी रानी का नाम सुमित्रा था। उसके एक पुत्री थी । उसका नाम था-रोहिणी । रोहिणी अत्यन्त रूपवती थी, उसके सौन्दर्य की बात सर्वत्र