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________________ २३४ ] [प्रश्नव्याकरणसूत्र : शु. २, अ. ५ इनका विशेष विवेचन सूत्रकृतांग आदि सूत्रों से जान लेना चाहिए। १४. भूतग्राम अर्थात् जीवों के समूह चौदह हैं, जो इस प्रकार हैं-(१) सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तक (२) सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तक (३) बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तक (४) बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तक (५) द्वीन्द्रिय पर्याप्तक (६) द्वीन्द्रिय अपर्याप्तक (७-८) त्रीन्द्रिय पर्याप्तक और अपर्याप्तक (९-१०) चतुरिन्द्रिय पर्याप्तक-अपर्याप्तक (११-१२) पंचेन्द्रिय असज्ञी पर्याप्तक-अपर्याप्तक (१३-१४) पंचेन्द्रिय संज्ञी पर्याप्तक और अपर्याप्तक । १५. नारक जीवों को, तीसरे नरक तक जाकर नानाविध पीड़ा देने वाले असुरकुमार देव परमाधार्मिक कहलाते हैं । वे पन्द्रह प्रकार के हैं-(१) अम्ब (२) अम्बरीष (३) श्याम (४) शबल (५) रौद्र (६) उपरौद्र (७) काल (८) महाकाल (९) असिपत्र (१०) धनु (११) कुभ (१२) वालुक (१३) वैतरणिक (१४) खरस्वर और (१५) महाघोष । इनके द्वारा उत्पन्न की जाने वाली यातनाओं का वर्णन प्रथम प्रास्रवद्वार में आ गया है । १६. गाथाषोडशक-सूत्रकृतांगसूत्र के वे सोलह अध्ययन जिनमें गाथा नामक अध्ययन सोलहवाँ हैं । उनके नाम ये हैं-(१) समय (२) वैतालीय (३) उपसर्गपरिज्ञा (४) स्त्रीपरिज्ञा (५) नरकविभक्ति (६) वीरस्तुति (७) कुशीलपरिभाषित (८) वीर्य (९) धर्म (१०) समाधि (११) मार्ग (१२) समवसरण (१३) याथातथ्य (१४) ग्रन्थ (१५) यमकीय और (१६) गाथा । १७. असंयम-(१) पृथ्वीकाय-असंयम (२) अप्काय-असंयम (३) तेजस्काय-असंयम (४) वायुकाय-असंयम (५) वनस्पतिकाय-असंयम (६) द्वीन्द्रिय-असंयम (७) त्रीन्द्रिय-असंयम (८) चतुरिन्द्रिय-असंयम (९) पञ्चेन्द्रिय-असंयम (१०)अजीव-असंयम (११) प्रेक्षा-असंयम (१२) उपेक्षा-असंयम (१३) अपहृत्य (प्रतिष्ठापन) असंयम (१४) अप्रमार्जन-असंयम (१५) मन-असयम (१६) वचनअसंयम और (१७) काय-असंयम । पृथ्वीकाय आदि नौ प्रकार के जीवों को यतना न करना, इनका प्रारम्भ करना और मूल्यवान् वस्त्र, पात्र पुस्तक आदि अजीव वस्तुओं को ग्रहण करना, जीव-अजीव-असंयम है। धर्मोपकरणों की यथाकाल यथाविधि प्रतिलेखना न करना प्रेक्षा-असंयम है। संयम-कार्यों करना और असंयमयुक्त कार्य में प्रवृत्ति करना उपेक्षा-असंयम है। मल-मूत्र आदि का शास्त्रोक्त विधि के अनुसार प्रतिष्ठापन न करना-त्यागना अपहृत्य-प्रतिष्ठापन-असंयम है । वस्त्र-पात्र आदि उपधि का विधिपूर्वक प्रमार्जन नहीं करना अप्रमार्जन-असंयम है । मन को प्रशस्त चिन्तन में नहीं लगाना या अप्रशस्त चिन्तन में लगाना मानसिक-असंयम है। अप्रशस्त या मिथ्या अथवा अर्ध मिथ्या वाणी का प्रयोग करना ववन-असंयम है और काय से सावध व्यापार करना काय-असंयम है। १८. अब्रह्म-अब्रह्मचर्य के अठारह प्रकार ये हैं -- अोरलिय च दिव्वं, मण-वय-कायाण करण-जोगेहिं । अणुमोयण - कारावण - करणेणट्ठारसाऽबभं ।। अर्थात्-औदारिक शरीर द्वारा मन, वाणी और काय से अब्रह्मचर्य का सेवन करना, कराना और अनुमोदना तथा इसी प्रकार वैक्रिय शरीर द्वारा मन, वचन, काय से अब्रह्म का सेबन करना, कराना और अनुमोदन करना । दोनों के सम्मिलित भेद अठारह हैं।
SR No.003450
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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