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चतुर्थ अध्ययन : बहाचर्य तृतीय संवरद्वार में अदत्तादानविरमणव्रत का निरूपण किया गया है। उसका सम्यक् प्रकार से परिपालन ब्रह्मचर्य व्रत को धारण और पालन करने पर ही हो सकता है। अतएव अदत्तादानविरमण के अनन्तर ब्रह्मचर्य का निरूपण किया जा रहा है। ब्रह्मचर्य की महिमा
१४१-जंबू ! इत्तो य बंभचेरं उत्तम-तव-णियम-णाण-सण-चरित्त-सम्मत्त-विणय-मूलं, यम-नियम-गुणप्पहाणजुत्तं, हिमवंतमहंततेयमंतं, पसत्थगंभीरथिमियमझ, अज्जवसाहुजणाचरियं, मोक्खमग्गं, विसुद्धसिद्धिगइणिलयं, सासयमव्वाबाहमपुणब्भवं, पसत्थं, सोम, सुभं, सिवमयलमक्खयकरं जइवरसारक्खियं, सुचरियं, सुभासियं,' णवरि मुणिवरेहि महापुरिसधीरसूरधम्मियधिइमंताण य सया विसुद्धं, सव्वं भव्वजणाणुचिण्णं, णिस्संकियं णिन्भयं णित्तुसं, णिरायासं णिरुवलेवं णिव्वुइघरं णियमणिप्पकंपं तवसंजममूलवलियणेम्मं पंचमहव्वयसुरक्खियं समिइगुत्तिगुत्तं ।
झाणवरकवाडसुकयं अज्झप्पदिण्णफलिहं सण्णद्धो च्छइयदुग्गइपहं सुगइपहदेसगं च लोगुतमंच।
वयमिणं पउमसरतलागपालिभूयं महासगडअरगतु बभूयं महाविडिमरुक्खखंधभूयं महाणगरपागारकवाडफलिहभूयं रज्जुपिणिद्धो व इंदकेऊ विसुद्धणेगगुणसंपिणद्धं, जम्मि य भग्गम्मि होइ सहसा सव्वं संभग्गमथियचुण्णियकुसल्लिय-पल्लट्ट-पडिय-खंडिय-परिसडिय-विणासियं विणयसीलतवणियमगुणसमूह.। तं बंभं भगवंतं ।
१४१ हे जम्बू ! अदत्तादानविरमण के अनन्तर ब्रह्मचर्य व्रत है । यह ब्रह्मचर्य अनशन आदि तपों का, नियमों-उत्तरगुणों का, ज्ञान का, दर्शन का, चारित्र का, सम्यक्त्व का और विनय का मूल है । यह अहिंसा आदि यमों और गुणों में प्रधान नियमों से युक्त है। यह हिमवान् पर्वत से भी महान् और तेजोवान् है । प्रशस्य है, गम्भीर है। इसकी विद्यमानता में मनुष्य का अन्तःकरण स्थिर हो जाता है। यह सरलात्मा साधुजनों द्वारा आसेवित है और मोक्ष का मार्ग है। विशुद्ध-रागादिरहित निर्मल-सिद्धिगतिरूपी गृह वाला है-सिद्धि के गृह के समान है। शाश्वत एवं अव्याबाध तथा पुनर्भव से रहित बनाने वाला है । यह प्रशस्त-उत्तम गुणों वाला, सौम्य-शुभ या सुखरूप है । शिवसर्व प्रकार के उपद्रवों से रहित, अचल और अक्षय-कभी क्षीण न होने वाले पद (पर्याय-मोक्ष) को
१. पाठान्तर--'सुसाहियं'। २. पाठान्तर- 'सुकय रक्खण' है। ३. पाठान्तर-'सण्णद्धो' के स्थान 'सण्णद्धबद्धो' भी है।