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प्रश्नव्याकरणसूत्र : अ. २, अ. २
स्पष्ट तथा पहले बुद्धि द्वारा सम्यक् प्रकार से विचारित ही साधु को अवसर के अनुसार बोलना चाहिए । ।
इस प्रकार अनुवीचिसमिति के — निरवद्य वचन बोलने की यतना के योग से भावित अन्तरात्मा - प्राणी हाथों, पैरों, नेत्रों और मुख पर संयम रखने वाला, शूर तथा सत्य और आर्जव धर्म सम्पन्न होता है ।
दूसरी भावनाः अक्रोध
१२३ - बिइयं - कोहो ण सेवियव्वो, कुद्धो चंडिविको मणूसो अलियं भणेज्ज, पिसुणं भणेज्ज, फरुसं भणेज्ज, श्रलियं - पिसुणं - फरुसं भणेज्ज, कलहं करिज्जा, वेरं करिज्जा, विकहं करिज्जा, कलहं वेरंविकहं करिज्जा, सच्चं हणेज्ज, सीलं हणेज्ज, विणयं हणेज्ज, सच्चं सीलं विणयं हणेज्ज, वेसो हवेज्ज, वत्थु हवेज्ज, गम्मो हवेज्ज, वेसो-वत्थु - गम्मो हवेज्ज, एयं प्रण्णं च एवमाइयं भणेज्ज कोहग्गसंपत्ति तम्हा कोहो ण सेवियव्वो । एवं खंतीइ भाविप्रो भवइ अंतरप्पा संजयकर-चरण-णयणवयणो सूरो सच्चज्जवसंपण्णो ।
१२३ - दूसरी भावना क्रोधनिग्रह — क्षमाशीलता है । ( सत्य के आराधक को ) क्रोध का सेवन नहीं करना चाहिए । क्रोधी मनुष्य रौद्रभाव वाला हो जाता है और (ऐसी अवस्था में ) असत्य भाषण कर सकता है (या करता है)। वह पिशुन - चुगली के वचन बोलता है, कठोर वचन बोलता है । मिथ्या, पिशुन और कठोर तीनों प्रकार के वचन बोलता है । कलह करता है, वैर-विरोध करता है, विकथा करता है तथा कलह - वैर - विकथा – ये तीनों करता है । वह सत्य का घात करता है, शील - सदाचार का घात करता है, विनय का विघात करता है और सत्य, शील तथा विनय - इन
का घात करता है । असत्यवादी लोक में द्वेष का पात्र बनता है, दोषों का घर बन जाता है और अनादर का पात्र बनता है तथा द्वेष, दोष और अनादर - इन तीनों का पात्र बनता है ।
क्रोधाग्नि से प्रज्वलितहृदय मनुष्य ऐसे और इसी प्रकार के अन्य सावद्य वचन बोलता है । श्रतएव क्रोध का सेवन नहीं करना चाहिए। इस प्रकार क्षमा से भावित अन्तरात्मा - अन्तःकरण वाला हाथों, पैरों, नेत्रों और मुख के संयम से युक्त, शूर साधु सत्य और प्रार्जव से सम्पन्न होता है । तीसरी भावनाः निर्लोभता
१२४ - तइयं - लोभो ण सेवियव्वो, १ लुद्धो लोलो भणेज्ज ग्रलियं खेत्तस्य व वत्थुस्स व कण, २ लुद्धो लोलो भणेज्ज श्रलियं, कित्तीए लोभस्स व कएण, ३ लुद्धो लोलो भणेज्ज श्रलियं, इड्ढीए व सोक्खस्स व करण, ४ लुद्धो लोलो भणेज्ज श्रलियं भत्तस्स व पाणस्स व कएण, ५ लुद्धो लोलो भज्ज श्रलियं, पीढस्स व फलगस्स व करण, ६ लुद्धो लोलो भणेज्ज अलियं सेज्जाए व संथारगस्स व कण, ७ लुद्धो लोलो भणेज्ज अलियं, वत्थस्स व पत्तस्स व काएण, ८ लुद्धो लोलो भणेज्ज अलियं, कंबलस्स व पायपु छणस्स व कएण, ९ लुद्धो लोलो भणेज्ज अलियं, सीसस्स व सिस्सिणीए व करण, लुद्धो लोलो भणेज्ज अलियं, अण्णेसु य एवमाइसु बहुसु कारणसएस लुद्धो लोलो भणेज्ज प्रलीयं तम्हा