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अहिंसा भगवती के साठे नाम ]
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(२०) समृद्धि- - सब प्रकार की सम्पन्नता से युक्त जीवन को आनन्दित करने वाली । (२१) ऋद्धि - लक्ष्मीप्राप्ति का कारण । (२२) वृद्धि - पुण्य-धर्म की वृद्धि का कारण ।
(२३) स्थिति - मुक्ति में प्रतिष्ठित करने वाली ।
(२४) पुष्टि - पुण्यवृद्धि से जीवन को पुष्ट बनाने वाली अथवा पाप का अपचय करके पुण्य का उपचय करने वाली ।
(२५) नन्दा - स्व और पर को श्रानन्द-प्रदान करने वाली । (२६) भद्रा -स्व का और पर का भद्र - कल्याण वाली ।
(२७) विशुद्धि - प्रात्मा को विशिष्ट शुद्ध बनाने वाली । (२८) लब्धि - केवलज्ञान आदि लब्धियों का कारण ।
(२९) विशिष्ट दृष्टि-विचार और प्रचार में अनेकान्तप्रधान दर्शन वाली ।
(३०) कल्याण - कल्याण या शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य का कारण ।
(३१) मंगल - पाप - विनाशिनी, सुख उत्पन्न करने वाली, भव-सागर से तारने वाली ।
(३२) प्रमोद - स्व-पर को हर्ष उत्पन्न करने वाली ।
(३३) विभूति - अध्यात्मिक ऐश्वर्य का कारण ।
(३४) रक्षा - प्राणियों को दुःख से बचाने की प्रकृतिरूप, आत्मा को सुरक्षित बनाने वाली । (३५) सिद्धावास - सिद्धों में निवास करने वाली, मुक्तिधाम में पहुँचाने वाली, मोक्षहेतु । ( ३६ ) अनालव - प्राते हुए कर्मों का निरोध करने वाली ।
(३७) केवलि-स्थानम् - केवलियों के लिए स्थानरूप |
(३८) शिव - सुख स्वरूप, उपद्रवों का शमन करने वाली ।
( ३९ ) समिति – सम्यक् प्रवृत्ति ।
(४० ) शील- सदाचार स्वरूपा, समीचीन श्राचार |
( ४१ ) संयम - मन और इन्द्रियों का निरोध तथा जीवरक्षा रूप ।
(४२) शीलपरिग्रह - सदाचार अथवा ब्रह्मचर्य का घर - चारित्र का स्थान ।
(४३) संवर - प्रस्रव का निरोध करने वाली ।
(४४) गुप्ति – मन, वचन, काय की असत् प्रवृत्ति को रोकना ।
(४५) व्यवसाय - विशिष्ट उत्कृष्ट निश्चय रूप ।
(४६) उच्छ्रय – प्रशस्त भावों की उन्नति - वृद्धि, समुदाय ।
(४७) यज्ञ - भावदेवपूजा अथवा यत्न-जीवरक्षा में सावधानतास्वरूप ।
(४८) प्रायतन - समस्त गुणों का स्थान ।
(४९) श्रप्रमाद - प्रमाद - लापरवाही आदि का त्याग ।
(५०) प्रश्वास - प्राणियों के लिए आश्वासन — तसल्ली ।
(५१) विश्वास - समस्त जीवों के विश्वास का कारण ।
(५२) अभय - प्राणियों को निर्भयता प्रदान करने वाली, स्वयं आराधक को भी निर्भय
बनाने वाली ।
(५३) सर्वस्य प्रमाघात - प्राणिमात्र की हिंसा का निषेध अथवा प्रमारी - घोषणास्वरूप ।