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[प्रश्नव्याकरणसूत्र : श्रु. १, अ. ४ डहसूमालमउयरोमराई झसविहगसुजायपीणकुच्छी असोयरा पम्हविगडणाभी संणयपासा संगयपासा सुंदरपासा सुजायपासा मियमाइयपीणरइयपासा अकरंडुयकणगरुयगणिम्मलसुजायणिरुवहयदेहधारी कणगसिलातलपसत्थसमतलउवइयवित्थिण्णपिहुलवच्छा जुयसण्णिभपीणरइयपीवरपउट्ठसंठियसुसिलिट्ठविसिटुलटुसुणिचियघणथिरसुबद्धसंधी पुरवरफलिहवट्टियभुया।
भुयईसरविउलभोगप्रायाणफलिउच्छूढदोहबाहू रत्ततलोवतियमउयमंसलसुजाय-लक्खणपसत्थअच्छिद्दजालपाणी पीवरसुजायकोमलवरंगुली तंबतलिणसुइरुइलणिद्धणखा णिद्धपाणिलेहा चंदपाणिलेहा सूरपाणिलेहा संखपाणिलेहा चक्कपाणिलेहा दिसासोवत्थियपाणिलेहा रविससिसंखवरचक्कदिसासोवत्थियविभत्तसुविरइयपाणिलेहा वरमहिसवराहसीहसदूलरिसहणागवरपडिपुण्णविउलखंधा चउरंगुलसुप्पमाणकंबुवरसरिसग्गीवा अवट्ठियसुविभत्तचित्तमंसू उवचियमंसलपसत्थसर्दूलविउलहणुया प्रोयवियसिलप्पवालबिबफलसण्णिभाधरोट्ठा पंडुरससिसकलविमलसंखगोखीरफेणकुददगरयमुणालियाधवलदंतसेढी प्रखंडदंता अप्फुडियदंता अविरलदंता सुणिद्धदंता सुजायदंता एगदंतसेढिव्व अणेगदंता हुयवहणिद्धतधोयतत्ततवणिज्जरत्ततला तालुजीहा गरुलायतउज्जुतुगणासा अवदालियपोंडरीयणयणा कोकासियधवलपत्तलच्छा प्राणामियचावरुइलकिण्हन्भराजि-संठियसंगयायसुजायभुमगा अल्लीणपमाणजुत्तसवणा सुसवणा पीणमंसलकवोलदेसभासा अचिरुग्णयबालचंदसंठियमहाणिलाडा उडुवइरिवपडिपुण्णसोमवयणा छत्तागारुत्तमंगदेसा घणणिचियसुबद्धलक्खणुण्णयकूडागारणिपिडियग्गसिरा हुयवहणिद्धतधोयतत्ततवणिज्जरत्तकेसंतकेसभूमी सामलीपोंडघणणिचियछोडियमिउविसतपसत्थसुहुमलक्खणसुगंधिसुदरभुयमोयभिंगणीलकज्जलपहट्ठभमरगणणिद्धणिगुरु बणिचियकुचियपयाहिणावत्तमुद्धसिरया सुजायसुविभत्तसंगयंगा।
८८-इसी प्रकार देवकुरु और उत्तरकुरु क्षेत्रों के वनों में और गुफाओं में पैदल विचरण करने वाले अर्थात् रथ, शकट आदि यानों और हाथी, घोड़ा आदि वाहनों का उपयोग न करके सदा पैदल चलने वाले नर-गण हैं अर्थात् यौगलिक-युगल मनुष्य होते हैं। वे उत्तम भोगों-भोगसाधनों से सम्पन्न होते हैं। प्रशस्त लक्षणों-स्वस्तिक आदि के धारक होते हैं । भोग-लक्ष्मी से युक्त होते हैं । वे प्रशस्त मंगलमय सौम्य एवं रूपसम्पन्न होने के कारण दर्शनीय होते हैं। उत्तमता से बने सभी अवयवों के कारण सर्वांग सुन्दर शरीर के धारक होते हैं। उनकी हथेलियाँ और पैरों के तलभागतलुवे लाल कमल के पत्तों की भांति लालिमायुक्त और कोमल होते हैं। उनके पैर कछुए के समान सुप्रतिष्ठित-सुन्दराकृति वाले होते हैं। उनकी अंगुलियाँ अनुक्रम से बड़ी-छोटी, सुसंहत-सघन-छिद्र-रहित होती हैं । उनके नख उन्नत-उभरे हुए, पतले, रक्तवर्ण और चिकनेचमकदार होते हैं। उनके पैरों के गुल्फ-टखने सुस्थित, सुघड़ और मांसल होने के कारण दिखाई नहीं देते हैं। उनकी जंघाएँ हिरणो की जंघा, कुरुविन्द नामक तृण और वृत्त—सूत कातने की तकली के समान क्रमशः वर्तुल एवं स्थूल होती हैं । उनके घुटने डिब्बे एवं उसके ढक्कन की संधि के समान गूढ होते हैं, (वे स्वभावत: मांसल-पुष्ट होने से दिखाई नहीं देते ।) उनकी गति–चाल मदोन्मत्त उत्तम हस्ती के समान विक्रम और विकास से युक्त होती है, अर्थात् वे मदोन्मत्त हाथी के समान मस्त एवं धीर गति से चलते हैं । उनका गुह्यदेश—गुप्तांग जननेन्द्रिय उत्तम जाति के घोड़े के गुप्तांग के समान सुनिर्मित एवं गुप्त होता है । जैसे उत्तम जाति के अश्व का गुदाभाग मल से