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[प्रश्नव्याकरणसूत्र : श्रु. १, अ. १ सुग-बरहिण-मयणसाल-कोइल-हंसकुले सारसे य साहिति पोसगाणं, वहबंधजायणं च साहिति गोम्मियाणं, धण-धण्ण-गवेलए य साहिति तक्कराणं, गामागर-णगरपट्टणे य साहिति चारियाणं, पारघाइय पंथघाइयायो य साहिति गंठभेयाणं, कयं च चोरियं साहिति जगरगुत्तियाणं । लंछण-णिलंछण-धमणदूहण-पोसण-वणण-दवण-वाहणाइयाइं साहिति बहूणि गोमियाणं, धाउ-मणि-सिल-प्पवाल-रयणागरे य साहिति प्रागरीणं, पुप्फविहिं फलविहिं च साहिति मालियाणं, अग्यमहुकोसए य साहिति वणचराणं।
५४.- इसी प्रकार (स्व-पर का अहित करने वाले मृषावादी जन) घातकों को भैसा और शूकर बतलाते हैं, वागुरिकों-व्याधों को शशक-खरगोश, पसय-मृगविशेष या मृगशिशु और रोहित बतलाते हैं, तीतुर, वतक और लावक तथा कपिजल और कपोत-कबूतर पक्षीघातकोंचिड़ीमारी को बतलाते हैं, झष—मछलियाँ, मगर और कछुमा मच्छीमारों को बतलाते हैं, शंख (द्वीन्द्रिय जीव), अंक-जल-जन्तुविशेष और क्षुल्लक-कौड़ी के जीव धीवरों को बतला देते हैं, अजगर, गोणस, मंडली एवं दर्वीकर जाति के सर्पो को तथा मुकुली--बिना फन के सर्पो को सँपेरों को–साँप पकड़ने वालों को बतला देते हैं, गोधा, सेह, शल्लकी और सरट-गिरगट लुब्धकों को बतला देते हैं, गजकुल और वानरकुल अर्थात् हाथियों और बन्दरों के झुंड पाशिकों-पाश द्वारा पकड़ने वालों को बतलाते हैं, तोता, मयूर, मैना, कोकिला और हंस के कुल तथा सारस पक्षी पोषकों-इन्हें पकड़ कर, बंदी बना कर रखने वालों को बतला देते हैं । प्रारक्षकों-कारागार आदि के रक्षकों को वध, बन्ध और यातना देने के उपाय बतलाते हैं । चोरों को धन, धान्य और गाय-बैल आदि पशु बतला कर चोरी करने की प्रेरणा करते हैं। गुप्तचरों को ग्राम, नगर, आकर और पत्तन आदि बस्तियाँ (एवं उनके गुप्त रहस्य) बतलाते हैं। ग्रन्थिभेदकों-गांठ काटने वालों को रास्ते के अन्त में अथवा बीच में मारने-लूटने-टांठ काटने आदि की सीख देते हैं । नगररक्षकोंकोतवाल आदि पुलिसकर्मियों को की हुई चोरी का भेद बतलाते हैं। गाय आदि पशुओं का पालन करने वालों को लांछन-कान आदि काटना, या निशान बनाना, नपुसक-वधिया करना, धमण-भैंस आदि के शरीर में हवा भरना (जिससे वह दूध अधिक दे), दहना, पोषनाजौ आदि खिला कर पुष्ट करना, बछड़े को दूसरी गाय के साथ लगाकर गाय को धोखा देना अर्थात् वह गाय दूसरे के बछड़े को अपना समझकर स्तन-पान कराए, ऐसी भ्रान्ति में डालना, पीड़ा पहुँचाना, वाहन गाड़ी आदि में जोतना, इत्यादि अनेकानेक पाप-पूर्ण कार्य कहते या सिखलाते हैं। इसके अतिरिक्त (वे मृषावादी जन) खान वालों को गैरिक आदि धातुएँ बतलाते हैं, चन्द्रकान्त आदि मणियाँ बतलाते हैं, शिलाप्रवाल-मूगा और अन्य रत्न बतलाते हैं । मालियों को पुष्पों और फलों के प्रकार बतलाते हैं तथा वनचरों-भील आदि वनवाली जनों को मधु का मूल्य और मधु के छत्ते बतलाते हैं अर्थात् मधु का मूल्य बतला कर उसे प्राप्त करने की तरकीब सिखाते हैं।
विवेचन-पूर्व में बतलाया गया था कि मृषावादी जन स्व और पर-दोनों के विघातक होते हैं । वे किस प्रकार उभय-विघातक हैं, यह तथ्य यहाँ अनेकानेक उदाहरणों द्वारा सुस्पष्ट किया गया है। जिनमें विवेक मूलत: है ही नहीं या लुप्त हो गया है, जो हित-अहित या अर्थ-अनर्थ का समीचीन विचार नहीं कर सकते, ऐसे लोग कभी-कभी स्वार्थ अथवा क्षुद्र-से स्वार्थ के लिए प्रगाढ़ पापकर्मों का संचय कर लेते हैं । शिकारियों को हिरण, व्याघ्र, सिंह आदि बतलाते हैं अर्थात् अमुक स्थान पर भरपूर शिकार करने योग्य पशु मिलेंगे ऐसा सिखलाते हैं। शिकारी वहाँ जाकर उन पशुओं