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The Shraman Bhagwan Mahavira addressed Gautam, saying: "Gautam! Right here in the city of Rajgriha, my follower, the Shraman Upasak named Mahashatak, is engaged in the worship of the final, death-inducing Sanlekhana in the Poshadshala. He has renounced food and water, not desiring death, but is immersed in Dharma worship.
260. Therefore, his wife, Revati, went to the Poshadshala in a state of intoxication, (stumbling, with her hair disheveled, repeatedly throwing her upper garment) and approached Mahashatak. (Repeatedly displaying seductive gestures, glances, and expressions of desire) She spoke to the Shraman Upasak Mahashatak about worldly pleasures. She said the same thing a second time, and a third time.
The incident unfolded as follows: Mahashatak's wife, Revati, went to the Poshadshala in a state of intoxication, (stumbling, with her hair disheveled, repeatedly throwing her upper garment) and approached Mahashatak. (Repeatedly displaying seductive gestures, glances, and expressions of desire) She spoke to the Shraman Upasak Mahashatak about worldly pleasures. She said the same thing a second time, and a third time.
261. Upon hearing Revati's words for the second and third time, the Shraman Upasak Mahashatak became angry. He used his Avadhijnana, and applied it. Knowing through Avadhijnana, he said to Revati: (O Revati, who desires death! Within seven nights, you will be afflicted by a disease called Alasak, and you will suffer, be distressed, and be helpless. When your lifespan is complete, you will die peacefully, and descend to the lower realms. 1. See Sutra number 254 2. See Sutra number 255 3. See Sutra number 84
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[उपासकदशांगसूत्र श्रमण भगवान् महावीर ने गौतम को सम्बोधित कर कहा-गौतम! यहीं राजगृह नगर में मेरा अन्तेवासी-अनुयायी महाशतक नामक श्रमणोपासक पोषधशाला में अन्तिम मारणान्तिक संलेखना की आराधना में लगा हुआ, आहार-पानी का परित्याग किए हुए मृत्यु की कामना न करता हुआ, धर्माराधना में निरत है।
२६०. तए णं तस्स महासयगस्स रेवई गाहावइणी मत्ता जाव (लुलिया, विइण्णकेसी उत्तरिज्जयं) विकड्ढमाणी २ जेणेव पोसहसाला, जेणेव महासयए, तेणेव उवागया, मोहुम्माय जाव (-जणणाई, सिंगारियाई इत्थिभावाइं उवदंसेमाणी २ महासययं समणोवासयं) एवं वयासी, तहेव जाव' दोच्चंपि, तच्चपि एवं वयासी।
घटना यों हुई-महाशतक की पत्नी रेवती शराब के नशे में उन्मत्त, (लड़खड़ाती हुई, बाल विखेरे, बार-बार अपना उत्तरीय फेंकती हुई) पोषधशाला में महाशतक के पास आई। (बार-बार मोह तथा उन्माद जनक कामोद्दीपक, कटाक्ष आदि हावभाव प्रदर्शित करती हुई) श्रमणोपासक महाशतक से विषय-सुख सम्बन्धी वचन बोली। उसने दूसरी बार, तीसरी बार फिर वैसा ही कहा।
२६१. तए णं से महासयए समणोवासए रेवईए गाहावइणीए दोच्चंपि तच्चंपि एवं वुत्ते समाणे आसुरत्ते ४ ओहिं पउंजइ, पउंजित्ता ओहिणा आभोएइ, आभोइत्ता रेवइं गाहावइणिं एवं वयासी-जाव' उववजिहिसि, नो खलु कप्पइ, गोयमा! समणोवासगस्स अपच्छिम जाव (मारणंतिय-संले हणा-झूसणा-) झूसिय-सरीरस्य, भत्तपाणपडियाइक्खियस्स परो संतेहिं, तच्चेहिं, तहिएहिं, सब्भूएहिं, अणिद्वेहिं, अकंतेहिं, अप्पिएहिं, अमणुण्णेहिं, अमणामेहिं वागरणेहिं वागरित्तए। तं गच्छ णं, देवाणुप्पिया! तुमं महासययं समणोवासयं एवं वयाहि-नो खलु देवाणुप्पिया! कप्पइ समणोवासगस्स अपच्छिम जाव (मारणंतिय-संलेहणा-झूसणा-झूसियस्स,) भत्त-पाण-पडियाइक्खियस्स परो संतेहिं जाव(तच्चेहि, तहिएहिं , सब्भूएहिं, अणितुहिं, अकंतेहिं, अप्पिएहिं, अमणुण्णेहिं, अमणामेहिं वागरणेहिं) वागरित्तए। तुमे य णं देवाणुप्पिया! रेवई गाहावइणी संतेहिं ४ अणिटेहिं ५ वागरणेहिं वागरिया। तं णं तुम एयस्स ठाणस्स आलोएहि जाव जहारिहं च पायच्छित्तं पडिवजाहि।
___ अपनी पत्नी रेवती द्वारा दूसरी बार, तीसरी बार यों कहे जाने पर श्रमणोपासक महाशतक को क्रोध आ गया। उसने अवधिज्ञान का प्रयोग किया, प्रयोग कर उपयोग लगाया। अवधिज्ञान से जान कर रेवती से कहा-(मौत को चाहने वाली रेवती! तू सात रात के अन्दर अलसक नामक रोग से पीडित होकर, व्यथित, दुःखित तथा विवश होती हुई, आयुकाल पूरा होने पर अशान्तिपूर्वक मर कर नीचे १. देखें सूत्र-संख्या २५४ २. देखें सूत्र-संख्या २५५ ३. देखें सूत्र-संख्या ८४