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________________ १४] [ ज्ञाताधर्मकथा आभूषणों तथा वस्त्रों के पिटारे के समान, यत्नपूर्वक सुरक्षित, मृत्तिकापात्र के समान सार-संभालपूर्वक गृहीत, रत्नों की पेटी के समान सम्हाली हुई, इसे सर्दी न लग जाए, गर्मी न लग जाए, डांस-मच्छर कष्ट न पहुँचाएँ, सर्प न डस जाए, चोर न उठा ले जाएँ, वात-पित्त-कफ अथवा सन्निपात जनित विविध प्रकार के रोग या आतंक - सहसा उत्पन्न होने वाले या मारणान्तिक रोग न हो जाएं, इस प्रकार की सावधानी से सार-संभाल की जाती हुई वह महारानी धारिणी श्रेणिक राजा के साथ विपुल भोगों का अनुभव करती हुई सुख भोगती हुई रहती थी । धारिणी का स्वप्नदर्शन १७ - तए णं सा धारिणी देवी अण्णया कयाइ तंसि तारिसगंसि छक्कट्ठक- लट्ठमट्ठसंठियखंभुग्गय-पवरवरसालभंजिय-उज्जलमणिकणगरयण - थूभिय- विडंगजालद्धचंदणिज्जूहकंतरकणयालिचंदसालिया - विभत्तिकलिए, सरसच्छधाऊलवण्णरइए, बाहिरओ दूमियघट्टमट्ठे, अब्भितरओ पसत्त-सुइलिहियचित्तकम्मे, णाणाविहपंचवण्णमणिरयकोट्टिमतले, पउमलयाफुल्लवल्लि-वरपुप्फजाइ - उल्लोयचित्तियतले, चंदणवरकणगकलस - सुविणिम्मिय पडिपुंजियसरस- पउमसोहंतदारभाए, पयरग्गालंबंतमणिमुत्तदाम- सुविरइयदारसोहे, सुगंधवरकुसुम-मउयपम्हल-सयणोवयारे, मणहिययनिव्वुइकरे, कप्पूर- लवंग-मलय- चंदणकालागुरु-पवरकुंदुरुक्क - तुरुक्क-धूवडज्झंतसुरभिमघमघंतगंधुद्धयाभिरामे, सुगंधवरगंधिए गंधट्ट, मणिकिरणपणासियंधयारे, किं बहुणा ? जुइगुणेहिं सुरवरविमाणवेलंबियवरघरए, तंसि तारिसगंसि सयणिज्जंसि, सालिंगणवट्टिए उभओ विब्बोयणे, दुहओ उन्नए, मज्झेण गंभीरे, गंगापुलिणवालुयाउद्दालसालिसए, ओयवियखोमदुगुल्लपट्टपडिच्छिन्ने, अत्थरय-मलयनवतय-कुसत्त-लिंब-सीहकेसरपच्चुत्थए, सुविरइयत्ताणे रत्तंसुयसंवुए, सुरम्मे, आइणग-रुय - बूर - णवणीय-तुल्लफासे; पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि सुत्त- जागरा ओहीरमाणी ओहीरमाणो एगं महं सत्तुस्सेहंरययकूडसन्निहं, नहयलंसि सोमं सोमाकारं लीलायंतं जंभायमाणं मुहमइगयं गयं पासित्ता णं पडिबुद्धा। वह धारिणी देवी किसी समय अपने उत्तम भवन में शय्या पर सो रही थी। वह भवन कैसा था ? उसके बाह्य आलन्दक या द्वार पर तथा मनोज्ञ, चिकने, सुंदर आकार वाले और ऊँचे खंभों पर अतीव उत्तम तयाँ बनी हुई थीं। उज्वल मणियों, कनक और कर्केतन आदि रत्नों के शिखर, कपोत- पाली, गवाक्ष, अर्ध-चंद्राकार सोपान, निर्यूहक (दरवाजे के दोनों ओर निकले हुए काष्ठ अंतर या निर्यूहकों के बीच का भाग, कनकाली तथा चन्द्रमालिका (घर के ऊपर की शाला) आदि घर के विभागों की सुन्दर रचना से युक्त था । स्वच्छ गेरु से उसमें उत्तम रंग किया हुआ था। बाहर से उसमें सफेदी की गई थी, कोमल पाषाण से घिसाई की गई थी, अतएव वह चिकना था । उसके भीतरी भाग में उत्तम और शुचि चित्रों का आलेखन किया गया था। उसका फर्श तरह-तरह की पंचरंगी मणियों और रत्नों से जड़ा हुआ था। उसका ऊपरी भाग (छत) पद्म के से आकार की लताओं से, पुष्पप्रधान बेलों से तथा उत्तम पुष्पजाति- मालती आदि से चित्रित था। उसके द्वारभागों में चन्दन - चर्चित, मांगलिक घट सुन्दर ढंग से स्थापित किए हुए थे । वे सरस कमलों से सुशोभित थे, प्रतरक - स्वर्णमय आभूषणों से एवं मणियों तथा मोतियों की लंबी लटकने वाली मालाओं से उसके द्वार
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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