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________________ ५४८] [ज्ञाताधर्मकथा १-सन्देह अनर्थ का कारण है, अतः बुद्धिमान पुरुष वीतराग जिनेश्वर द्वारा भाषित भाव-संत्य विषयों-भावों में सन्देह न करे। . २-निस्सन्देहता-आप्तवचनों पर श्रद्धा करने योग्य है। इस विषय में मयूरी के अण्डे ग्रहण करने वाले दो श्रेष्ठिपुत्र (जिनदत्तपुत्र और सागरदत्तपुत्र) उदाहरण हैं। ३-४-बुद्धि की दुर्बलता, तज्ज्ञ आचार्य का संयोग न मिलना, ज्ञेय विषय की अतिगहनता, ज्ञानावरणीय कर्म का उदय अथवा हेतु एवं उदाहरण का अभाव होने से कोई तत्त्व ठीक तरह से समझ में न आए, तो भी सर्वज्ञ का मत (सिद्धान्त) अवितथ (असत्य नहीं) है, विवेकी पुरुष को ऐसा विचार करना चाहिए। तथा ५-जिनेश्वर देव दूसरों से अनुपकृत होकर भी परोपकारपरायण, राग, द्वेष और मोह-अज्ञान से अतीत हैं, अत: अन्यथावादी हो ही नहीं सकते। चतुर्थ अध्ययन १-विसएसुइंदियाई, संभंता राग-दोस-निम्मुक्का। पावंति निव्वूइसुहं, कुम्मुव्व मयंगदहसोक्खं॥ २-अवरे उ अणत्थपरंपराउ पावंति पावकम्मवसा। __संसार-सागरगया गोमाउग्गसिय-कुम्मो व्व॥ विषयों से इन्द्रियों को रोकते हुए अर्थात् इन्द्रिय-विषयों में आसक्ति न रखने वाले राग-द्वेष से रहित साधक मुक्ति का सुख प्राप्त करते हैं, जैसे कूर्म (कच्छप) ने मृतगंगातीर हृद में पहुँच कर सुख प्राप्त किया। इसके विपरीत, पापकर्म के वशीभूत प्राणी संसार-सागर में गोते खाते हुए, शृगालों द्वारा ग्रस्त कूर्म की तरह अनेक अनर्थ-परम्पराओं को प्राप्त करते हैं। पंचम अध्ययन १-सिढिलियसंजमकजा वि होइडं उज्जमंति जइ पच्छा। संवेगाओ तो सेलउव्व आराहया होंति॥ । संयम-आराधना में शिथिल हो जाने पर भी यदि कोई साधक बाद में संवेग उत्पन्न हो जाने से संयम में उद्यत हो जाते हैं तो वे शैलक राजर्षि के समान आराधक होते हैं। षष्ठ अध्ययन १-जह मिउलेवालित्तं गरुयं तुंबं अहो वयइ एवं। आसव-कय-कम्मगुरू, जीवा वच्चंति अहरगई॥ २-तंचेव तब्विमुक्कं जलोवरि ठाइ जायलहुभावं। जह तह कम्मविमुक्का लोयग्गमइट्ठिया होंति॥
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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