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परिशिष्ट (१)
उवणय-गाहाओ
टीकाकार द्वारा प्रत्येक अध्ययन के अन्त में विभिन्नसंख्यक गाथाएँ उद्धृत की गई हैं, जिन्हें उपनय-गाथाओं के नाम से अभिहित किया गया है। ये गाथाएँ मूल सूत्र का अंश नहीं हैं, किसी स्थविर आचार्य द्वारा रचित हैं। अध्ययन के मूल भाव को स्पष्ट करने वाली होने से उन्हें परिशिष्ट के रूप में यहाँ उद्धृत किया जा रहा है।
प्रथम अध्ययन १-महुरेहिं णिउणेहिं वयणेहिं चोययंति आयरिया।
सीसे कहिंचि खलिए, जइ मेहमुणिं महावीरो॥ किसी प्रसंग पर शिष्य संयम से स्खलित हो जाय तो आचार्य उसे मधुर तथा निपुण वचनों से संयम में स्थिरता के लिए प्रेरित करते हैं। जैसे भगवान् महावीर ने मेघमुनि को स्थिर किया।
द्वितीय अध्ययन २-सिवसाहणेसुआहार-विरहिओ जंन वट्टए देहो।
तम्हा धण्णोव्व विजयं साहू तं तेण पोसेजा। मोक्ष के साधनों में आहार के विना यह देह समर्थ नहीं हो सकता, अतएव साधु आहार से शरीर का उसी प्रकार पोषण करे, जैसे धन्य-सार्थवाह ने विजय चोर का (लेशमात्र अनुराग न होने पर भी) पोषण किया।
तृतीय अध्ययन १-जिणवर-भासिय-भावेसु, भावसच्चेसु भावओ मइमं।
नो कुजा संदेहं, संदेहोऽणत्थहेउ ति॥ २-णिस्संदेहत्तं पुण गुणहेउं जं तओ तयं कजं।
एत्थं दो सेट्ठिसुया, अंडयगाही उदाहरणं॥ ३-कत्थइ महदुब्बल्लेणं, तविहायरियविरहओ वा वि।
नेयगहणत्तणेणं, नाणावरणोदएणं य॥ ४-हेऊदाहरणासंभवे य, सइ सुटु जं न बुझिजा।
सव्वण्णुमयमवितह, तहावि इइ चिंतए मइमं॥ ५-अणुवकयपराणुग्गह-परायणा जं जिणा जगप्पवरा।
जिय-राग-दोस-मोहा, य णनहावाइणो तेणं॥