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द्वितीय श्रुतस्कन्ध : पंचम वर्ग]
[५३९ ६७-तेणं कालेणं तेणं समएणं कमला देवी कमलाए रायहाणीए कमलवडेंसए भवणे कमलंसिसीहासणंसि, सेसंजहा कालीए तहेव।नवरं-पुव्वभवे नागपुरे नयरे, सहसंबवणे उज्जाणे, कमलस्स गाहावइस्स कमलसिरीए भारियाए कमला दारिया पासस्स अरहओ अंतिए निक्खंता, कालस्स पिसायकुमारिदस्स अग्गमहिसी, अद्धपलिओवमं ठिई।
उस काल और उस समय कमला देवी कमला नामक राजधानी में, कमलावतंसक भवन में, कमल नामक सिंहासन पर आसीन थी। आगे की शेष समस्त घटना काली देवी के अध्ययन के अनुसार ही जानना चाहिए। काली देवी से विशेषता मात्र यह है-पूर्वभव में कमला देवी नागपुर नगर में थी। वहाँ सहस्राम्रवन नामक चैत्य था। कमल गाथापति था। कमलश्री उसकी पत्नी थी और कमला पुत्री थी। कमला अरहन्त पार्श्व के निकट दीक्षित हो गई। शेष वृत्तान्त पूर्ववत् जान लेना चाहिए यावत् वह काल नामक पिशाचेन्द्र की अग्रमहिषी के रूप में जन्मी। उसकी आयु वहाँ अर्ध-पल्योपम की है।
शेष अध्ययन ६८-एवं सेसा वि अज्झयणा दाहिणिल्लाणं वाणमंतरिंदाणं भाणियव्वओ।सव्वाओ नागपुरे सहसंबवणे उज्जाणे माया-पिया धूया सरिसनामया, ठिई अद्धपलिओवमं।
इसी प्रकार शेष एकतीस अध्ययन दक्षिण दिशा के वाणव्यन्तर इन्द्रों के कह लेने चाहिएँ। कमलप्रभा आदि ३१ कन्याओं ने पूर्वभव में नागपुर में जन्म लिया था। वहाँ सहस्राम्रवन उद्यान था। सब-के माता-पिता के नाम कन्याओं के नाम के समान ही हैं। देवीभव में स्थिति सबकी आधे-आधे पल्योपम की कहनी चाहिए।
॥पंचम वर्ग समाप्त॥
छट्टो करगो-षष्ठ वर्ग
१-३२ अध्ययन ६९-छट्ठो वि वग्गो पंचमवग्गसरिसो। णवरं महाकालिंदाणं उत्तरिल्लाणं इंदाणं अग्गमहिसीओ।
पुव्वभवे सागेयनयरे, उत्तरकुरु-उज्जाणे, माया-पिया धूया सरिसणामया।सेसंतंचेव।
छठा वर्ग भी पांचवें वर्ग के समान है। विशेषता इतनी ही है कि ये सब कुमारियां महाकाल इन्द्र आदि उत्तर दिशा के आठ इन्द्रों की बत्तीस अग्रमहिषियाँ हुईं।
पूर्वभव में सब साकेतनगर में उत्पन्न हुईं। उत्तरकुरु नामक उद्यान उस नगर में था। इन कुमारियों के नाम के समान ही उनके माता-पिता के नाम थे। शेष सब पूर्ववत्।
॥छट्ठा वर्ग समाप्त ॥