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________________ द्वितीय श्रुतस्कन्ध : प्रथम वर्ग] [५२३ धर्मकार्य में प्रयुक्त होने वाले श्रेष्ठ यान पर आरूढ़ हुई। १७–तएणं सा कालीदारिया धम्मियं जाणप्पवरं दुरूढा समाणी एवं जहा दोवई जाव पज्जुवासइ। तए णं पासे अरहा पुरिसादाणीए कालीए दारियाए तीसे य महइमहालियाए परिसाए धम्मं कहेइ। तत्पश्चात् काली नामक दारिका धार्मिक श्रेष्ठ यान पर आरूढ़ होकर द्रौपदी के समान भगवान् को वन्दना करके उपासना करने लगी। उस समय पुरुषादानीय तीर्थंकर पार्श्व ने काली नामक दारिका को और उपस्थित विशाल जनसमूह को धर्म का उपदेश दिया। १८-तए णं सा काली दारिया पासस्स अरहओ पुरिसादाणीयस्स अंतिए धम्म सोच्चा णिसम्म हट्ठ जाव हियया पासं अरहं पुरिसादाणीयं तिक्खुत्तो वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-'सद्दहामिणं भंते! णिग्गंथं पावयणं जाव से जहेयं तुब्भे वयह, जंणवरं देवाणुप्पिया! अम्मापियरो आपुच्छामि, तए णं अहं देवाणुप्पियाणं अंतिए जाव [मुंडा भवित्ता णं अगाराओ अणगारियं] पव्वयामि।' . 'अहासुहं देवाणुप्पिए !' तत्पश्चात् उस काली नामक दारिका ने पुरुषादानीय अरिहन्त पार्श्वनाथ के पास से धर्म सुन कर और उसे हृदयंगम करके, हर्षितहृदय होकर यावत् पुरुषादानीय अरिहन्त पार्श्वनाथ को तीन बार वन्दना की, नमस्कार किया। वन्दना, नमस्कार करके इस प्रकार निवेदन किया-'भगवन् ! मैं निर्ग्रन्थप्रवचन पर श्रद्धा करती हूँ यावत् आप जैसा कहते हैं, वह वैसा ही है। केवल, हे देवानुप्रिय! मैं अपने माता-पिता से पूछ लेती हूँ, उसके बाद मैं आप देवानुप्रिय के निकट [मुंडित होकर गृहत्याग करके] प्रव्रज्या ग्रहण करूंगी।' भगवान् ने कहा-'देवानुप्रिये! जैसे तुम्हें सुख उपजे, करो।' १९-तए णं सा काली दारिया पासेणं अरहया पुरिसादाणीएणं एवं वुत्ता समाणी हट्ट जाव हियया पासं अरहं वंदइ, नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता तमेव धम्मियं जाणप्पवरं दुरूहइ, दुरूहित्ता पासस्स अरहओ पुरिसादाणीयस्स अंतियाओ अंबसालवणाओ चेइयाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव आमलकप्पा नयरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता आमलकप्पं णयरिं मझमझेणं जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धम्मियं जाणपवरं ठवेइ, ठवित्ता धम्मियामो जाणप्पवराओ पच्चोरुहइ, पच्चारुहित्ता जेणेव अम्मापियरो तेणेव उगावच्छइ, उवागच्छित्ता करयल जाव एवं वयासी तत्पश्चात् पुरुषादानीय अरिहन्त पार्श्व के द्वारा इस प्रकार कहने पर वह काली नामक दारिका हर्षित एवं संतष्ट हृदय वाली हई। उसने पार्श्व अरिहंत को वन्दन और नमस्कार किया। वन्दन-नमस्कार करके वह उसी धार्मिक श्रेष्ठ यान पर आरूढ़ हुई। आरूढ़ होकर पुरुषादानीय अरिहन्त पार्श्व के पास से, आम्रशालवन १. प्र. अ. सूत्र ११५.
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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