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द्वितीय श्रुतस्कन्ध : प्रथम वर्ग]
[५२१ उसी प्रकार काली देवी ने भी आज्ञा दी यावत् 'दिव्य और श्रेष्ठ देवताओं के गमन के योग्य यान-विमान बनाकर तैयार करो, यावत् मेरी आज्ञा वापिस सौंपो।' आभियोगिक देवों ने आज्ञानुसार कार्य करके आज्ञा लौटा दी। यहाँ विशेषता यही है कि हजार योजन विस्तार वाला विमान बनाया (जब कि सूर्याभ देव के लिए लाख योजन का विमान बनाया गया था)। शेष वर्णन सूर्याभ के वर्णन के समान ही समझना चाहिए। सूर्याभ की तरह ही भगवान् के पास जाकर अपना नाम-गोत्र कहा, उसी प्रकार नाटक दिखलाया। फिर वन्दन-नमस्कार करके काली देवी वापिस चली गई।
११-भंते! त्ति भगवंगोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइणमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-'कालीए णं भंते! देवीए सा दिव्वा देविड्डी कहिं गया?' कूडागारसाला-दिळंतो।
'अहो भगवन्!' इस प्रकार संबोधन करके भगवान् गौतम ने श्रमण भगवान् महावीर को वन्दना की, नमस्कार किया, वन्दना-नमस्कार करके इस प्रकार कहा-'भगवन् ! काली देवी की वह दिव्य ऋद्धि कहाँ चली गई?' भगवान् ने उत्तर में कूटाकारशाला का दृष्टान्त दिया।' काली देवी का पूर्वभव
१२–'अहो णं भंते! काली देवी महिड्डिया। कालीए णं भंते! देवीए सा दिव्वा देविड्डी किण्णा लद्धा? किण्णा पत्ता?किण्णा अभिसमण्णागया?'
__एवं जहा सूरियाभस्स जाव एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे आमलकप्पा णाम णयरी होत्था।वण्णओ।अंबसालवणे चेइए। जियसत्तू राया।
'अहो भगवन्! काली देवी महती ऋद्धि वाली है। भगवन् ! काली देवी को वह दिव्य देवर्धि पूर्वभव में क्या करने से मिली? देवभव में कैसे प्राप्त हुई ? और किस प्रकार उसके सामने आई, अर्थात् उपभोग में आने योग्य हुई?'.
यहाँ भी सूर्याभ देव के समान ही कथन समझना चाहिए। भगवान् ने कहा-'हे गौतम! उस काल और उस समय में, इस जम्बूद्वीप नाम द्वीप में, भारतवर्ष में, आमलकल्पा नामक नगरी थी। उसका वर्णन कहना चाहिए। उस नगरी के बाहर ईशान दिशा में आम्रशालवन नामक चैत्य (वन) था। उस नगरी में जितशत्रु नामक राजा था।'
१३-तत्थ णं आमलकप्पाए नयरीए काले णामंगाहावई होत्था, अड्ढे जाव अपरिभूए। तस्स णं कालस्स गाहावइस्स कालसिरी णामं भारिया होत्था, सुकुमालपाणिपाया जाव सुरूवा। तस्स णं कालगस्स गाहावइस्स धूया कालसिरीए भारियाए अत्तया काली णामं दारिया होत्था, वड्डा वड्डकुमारी जुण्णा जुण्णकुमारी पडियपुयत्थणी णिव्विन्नवरा वरपरिवज्जिया वि होत्था।
___ उस आमलकल्पा नगरी में काल नामक गाथापति (गृहस्थ) रहता था। वह धनाढ्य था और किसी से पराभूत होने वाला नहीं था। काल नामक गाथापति की पत्नी का नाम कालश्री था। वह सुकुमार हाथ-पैर आदि अवयवों वाली यावत् मनोहर रूप वाली थी। उस काल गाथापति की पुत्री और कालश्री भार्या की आत्मजा काली नामक बालिका थी। वह (उम्र से) बड़ी थी और बड़ी होकर भी कुमारी (अविवाहिता) थी।
१. दृष्टान्त का विवरण पहले आ चुका है, देखिये पृ. ३३६.