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________________ द्वितीय श्रुतस्कन्ध : प्रथम वर्ग] [५१९ जइणं भंते! समणेणं जाव संपत्तेणं पढमस्स वग्गस्स पंच अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं जाव संपत्तेणं के अढे पण्णत्ते? जम्बूस्वामी पुनः प्रश्न करते हैं-भगवन्! श्रमण भगवान् यावत् सिद्धिप्राप्त ने यदि धर्मकथा श्रुतस्कंध के दस वर्ग कहे हैं, तो भगवन् ! प्रथम वर्ग का श्रमण यावत् सिद्धिप्राप्त भगवान् ने क्या अर्थ कहा है ? आर्य सुधर्मा उत्तर देते हैं-जम्बू! श्रमण यावत् सिद्धिप्राप्त भगवान् ने प्रथम वर्ग के पांच अध्ययन कहे हैं। वे इस प्रकार हैं-(१) काली (२) राजी (३) रजनी (४) विद्युत् और (५) मेघा। जम्बू ने पुनः प्रश्न किया-भगवन् ! श्रमण यावत् सिद्धिप्राप्त महावीर भगवान् ने यदि प्रथम वर्ग के पाँच अध्ययन कहे हैं तो हे भगवन् ! प्रथम अध्ययन का श्रमण यावत् सिद्धिप्राप्त भगवान् ने क्या अर्थ कहा है? ६–'एवं खलुजंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणंरायगिहे णयरे, गुणसीलए चेइए, सेणिए राया, चेलणा देवी। सामी समोसरिए। परिसा निग्गया जाव परिसा पज्जुवासइ।' श्री सुधर्मास्वामी उत्तर देते हैं- जम्बू! उस काल और उस समय में राजगृह नगर था, गुणशील चैत्य था, श्रेणिक राजा था और चेलना रानी थी। . उस समय स्वामी (भगवान् महावीर) का पदार्पण हुआ। वन्दना करने के लिए परिषद् निकली, यावत् परिषद् भगवान् की पर्युपासना करने लगी। काली देवी की कथा ७–तेणं कालेणं तेणं समएणं काली नामं देवी चमरचंचाए रायहाणीए कालवडिंसगभवणे कालंसि सीहासणंसि, चउहिं सामाणियसाहस्सीहि, चउहि महयरियाहिं, सपरिवाराहिं, तिहिं परिसाहिं सत्तहिं अणिएहिं, सत्तहिं अणियाहिवईहिं,सोलसहिं आयरक्खदेवसाहस्सीहिं, अण्णेहि बहुएहि य कालवडिंसयभवणवासीहिं असुरकुमारेहिं देवेहिं देवीहि यसद्धिं संपरिवुडा महयाहय जाव विहरइ। उस काल और उस समय में, काली नामक देवी चमरचंचा राजधानी में, कालावतंसक भवन में, काल नामक सिंहासन पर आसीन थी। चार हजार सामानिक देवियों, चार महत्तरिका देवियों, परिवार सहित तीनों परिषदों, सात अनीकों, सात अनीकाधिपतियों, सोलह हजार आत्मरक्षक देवों तथा अन्यान्य कालावतंसक भवन के निवासी असुरकुमार देवों और देवियों से परिवृत्त होकर जोर से बजने वाले वादित्र नृत्य गीत आदि से मनोरंजन करती हुई विचर रही थी। ८-इमंचणं केवलकप्पंजंबुद्दीवं दीवं विउलेणं ओहिणा आभोएमाणी आभोएमाणी पासइ। तत्थ णं समणं भगवं महावीरं जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे रायगिहे नयरे गुणसिलए चेइए अहापडिरूवं उग्गहं उग्णिण्हित्ता संयमेण तवसा अप्पाणं भावेमाणे पासइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठचित्तमाणंदिया पीइमणा हयहियया सीहासणाओ अब्भुढेइ, अब्भुट्टित्ता पायपीढाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता पाउयाओ ओमुयइ, ओमुइत्ता तित्थगराभिमुही सत्तट्ठ पयाइं अणुगच्छइ,
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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