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________________ ५१८] [ज्ञाताधर्मकथा उस काल और उस समय में आर्य सुधर्मा अनगार के अन्तेवासी आर्य जम्बू नामक अनगार यावत् सुधर्मास्वामी की उपासना करते हुए बोले- भगवन्! यदि यावत् सिद्धि को प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने छठे अंग के 'ज्ञातश्रुत' नामक प्रथम श्रुतस्कंध का यह (पूर्वोक्त) अर्थ कहा है, तो भगवन्! धर्मकथा नामक द्वितीय श्रुतस्कंध का सिद्धपद को प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने क्या अर्थ कहा है? सुधर्मास्वामी का उत्तर ४-एवं खलु जंबू! समणेणं जाव संपत्तेणं धम्मकहाणं दस वग्गा पन्नत्ता, तंजहा(१) चमरस्स अग्गमहिसीणं पढमे वग्गे। (२) बलिस्स वइरोयणिंदस्स वइरोयणरण्णो अग्गमहिसीणं बीए वग्गे। (३)असुरिंदवजियाणं दाहिणिल्लाणं भवणवासीणं इंदाणं अग्गमहिसीणं तइए वग्गे। (४) उत्तरिल्लाणं असुरिंदवज्जियाणं भवणवासिइंदाणं अग्गमहिसीणं चउत्थे वग्गे। (५) दाहिणिल्लाणं वाणमंतराणं इंदाणं अग्गमहिसीणं पंचमे वग्गे। . (६) उत्तरिल्लाणं वाणमंतराणं इंदाणं अग्गमहिसीणं छठे वग्गे। (७) चंदस्स अग्गमहिसीणं सत्तमे वग्गे। (८) सूरस्स अग्गमहिसीणं अट्ठमे वग्गे। (९) सक्कस्स अग्गमहिसीणं णवमे वग्गे। (१०) ईसाणस्स अग्गमहिसीणं दसमे वग्गे। श्री सुधर्मास्वामी ने उत्तर दिया-'इस प्रकार हे जम्बू! यावत् सिद्धिप्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने धर्मकथा नामक द्वितीय श्रुतस्कंध के दस वर्ग कहे हैं। वे इस प्रकार हैं (१) चमरेन्द्र की अग्रमहिषियों (पटरानियों) का प्रथम वर्ग। (२) वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि (बलीन्द्र) की अग्रमहिषियों का दूसरा वर्ग। (३) असुरेन्द्र को छोड़ कर शेष नौ दक्षिण दिशा के भवनपति इन्द्रों की अग्रमहिषियों का तीसरा वर्ग। (४) असुरेन्द्र के सिवाय नौ उत्तर दिशा के भवनपति इन्द्रों की अग्रमहिषियों का चौथा वर्ग। (५) दक्षिण दिशा के वाणव्यन्तर देवों के इन्द्रों की अग्रमहिषियों का पाँचवाँ वर्ग। (६) उत्तर दिशा के वाणव्यन्तर देवों के इन्द्रों की अग्रमहिषियों का छठा वर्ग। (७) चन्द्र की अग्रमहिषियों का सातवाँ वर्ग। (८) सूर्य की अग्रमहिषियों का आठवाँ वर्ग। (९) शक्र इन्द्र की अग्रमहिषियों का नौवाँ वर्ग और (१०) ईशानेन्द्र की अग्रमहिषियों का दसवाँ वर्ग। ५-जइणंभंते! समणेणंजाव संपत्तेण धम्मकहाणं दस वग्गा पन्नत्ता, पढमस्सणं भंते! वग्गस्स समणेणं जाव संपत्तेणं के अढे पण्णत्ते? एवं खलु जंबू!समणेणंजाव संपत्तेणं पढमस्स वग्गस्स पंच अज्झयणा पण्णत्ता, तंजहा(१) काली (२) राई (३) रयणी (४) विजू (५) मेहा।
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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