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________________ ५१०] [ज्ञाताधर्मकथा प्रव्रज्या का परित्याग २०-तए णं पुंडरीए कंडरीयं एवं वयासी-'अट्ठो भंते! भोगोहिं ?' "हंतो अट्ठो।' तब पुण्डरीक राजा ने कंडरीक से पूछा-'भगवन् ! क्या भोगों से प्रयोजन है ?' अर्थात् क्या भोग भोगने की इच्छा है? __तब कंडरीक ने कहा-'हाँ प्रयोजन है।' राज्याभिषेक २१-तए णं पोंडरीए राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी-'खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! कंडरीयस्स महत्थं जाव रायाभिसेयं उवट्ठवेह।' जावरायाभिसेएणं अभिसिंचइ। ____ तत्पश्चात् पुण्डरीक राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। बुला कर इस प्रकार कहा–'देवानुप्रियो! शीघ्र ही कंडरीक के महान् अर्थव्यय वाले एवं महान् पुरुषों के योग्य राज्याभिषेक की तैयारी करो।' यावत् कंडरीक राज्याभिषेक से अभिषिक्त किया गया। वह मुनिपर्याय त्याग कर राजसिंहासन पर आसीन हो गया। पुण्डरीक का दीक्षा ग्रहण २२-तए णं पुंडरीए सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ सयमेव चाउज्जामं धम्म पडिवजइ, पडिवजित्ता कंडरीयस्स अतिअं आयारभंडयं गेण्हइ, गेण्हित्ता इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ-'कप्पइ मे थेरे वंदित्ता णमंसित्ता थेराणं अंतिए चाउज्जामं धम्मं उवसंपजित्ता णं तओ पच्छा आहारं आहारित्तए'त्ति कटुइमंच एयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हेत्ता णं पोंडरीगिणीए पडिणिक्खमइ।पडिणिक्खमित्ता पुव्वाणुपुचि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव पहारेत्थ गमणाए। तत्पश्चात् पुण्डरीक ने स्वयं पंचमुष्टिक लोच किया और स्वयं ही चातुर्याम धर्म अंगीकार किया। अंगीकार करके कंडरीक के आचारभाण्ड (उपकरण) ग्रहण किये और इस प्रकार का अभिग्रह किया 'स्थविर भगवान् को वन्दन-नमस्कार करने और उनके पास से चातुर्याम धर्म अंगीकार करने के पश्चात् ही मुझे आहार करना कल्पता है।' ऐसा कहकर और इस प्रकार का अभिग्रह धारण करके पुण्डरीक पुण्डरीकिणी नगरी से बाहर निकला। निकल कर अनुक्रम से चलता हुआ, एक ग्राम से दूसरे ग्राम जाता हुआ, जिस ओर स्थविर भगवान् थे, उसी ओर गमन करने को उद्यत हुआ। विवचेन-आगमों में अनेक स्थलों पर दीक्षा के प्रसंग में पंचमुट्ठियलोय' अर्थात् पञ्च मुष्टियों द्वारा लोच करने का उल्लेख आता है। अभिधानराजेन्द्रकोष में इसका अर्थ किया गया है-'पञ्चभिर्मुष्टिभिः शिरः केशापनयनम्' अर्थात् पाँच मुट्ठियों से शिर के केशों का उत्पाटन करना-हटा देना। इस अर्थ के अनुसार पाँच मुट्ठियों से शिर के केशों को उखाड़ने का अभिप्राय तो स्पष्ट होता है किन्तु दाढ़ी और मूंछों के केशों के विषय में कुछ भी ज्ञात नहीं होता। इन केशों का अपनयन पाँच मुट्ठियों से
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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