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[ज्ञाताधर्मकथा
___ (चिलात ने कहा)-'देवानुप्रियो! राजगृह नगर में धन्य नामक धनाढ्य सार्थवाह है। उनकी पुत्री, भद्रा की आत्मजा और पांच पुत्रों के पश्चात् जन्मी हुई सुंसुमा नाम की लड़की है। वह परिपूर्ण इन्द्रियों वाली यावत सन्दर रूप वाली है। तो हे देवानप्रियो! हम लोग चलें और धन्य सार्थवाह का घर लूटें। उस लूट में मिलने वाला विपुल धन, कनक, यावत् [रत्न, मणि, मोती, शंख तथा] शिला, मूंगा वगैरह तुम्हारा होगा, सुंसुमा लड़की मेरी होगी।'
तब उन पाँच सौ चोरों ने चोरसेनापति चिलात की बात अंगीकार की।
२२–तए णं से चिलाए चोरसेणावई तेहिं पंचहिं चोरसएहिं सद्धिं अल्लं चम्मं दुरूहइ, पच्चावरणहकालसमयंसि पंचहि चोरसएहिं सद्धिं सन्नद्ध जाव गहियाउहपहरणे माइयगोमुहिएहिं फलएहिं, णिक्कट्ठाहिं असिलट्ठीहिं, अंसगएहिं तोणेहिं, सजीवेहिं धणूहि, समुक्खित्तेहिं सरेहिं समुल्लालियाहिं दाहाहिं, ओसारियाहिं उरुघंटियाहिं, छिप्पतूरेहिं वजमाणेहि महया महया उक्किट्ठासीहणाय-बोल-कलकलरवेणं जाव [ पक्खुभियमहा-] समुद्दरवभूयं करेमाणा सीहगुहाओ चोरपल्लीओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव रायगिहे नगरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता रायगिहस्स अदूरसामंते एगं महंगहणं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता दिवसंखवेमाणो चिट्ठइ।
तत्पश्चात् चिलात चोरसेनापति उन पाँच सौ चोरों के साथ (मंगल के लिए) आर्द्र चर्म (गीली चमड़ी) पर बैठा। फिर दिन के अंतिम प्रहर में पाँच सौ चोरों के साथ कवच धारण करके तैयार हुआ। उसने आयुध और प्रहरण ग्रहण किये। कोमल गोमुखित-गाय के मुख सरीखे किए हुए फलक (ढाल) धारण किये। तलवारें म्यानों से बाहर निकाल लीं। कन्धों पर तर्कश धारण किये। धनष जीवायक्त कर लिए। वाण बाहर निकाल लिए। बर्छियाँ और भाले उछालने लगे। जंघाओं पर बाँधी हुई घंटिकाएँ लटका दीं। शीघ्र बाजे बजने लगे। बड़े-बड़े उत्कृष्ट सिंहनाद और बोलों की कल-कल ध्वनि से ऐसा प्रतीत होने लगा जैसे महासमुद्र का खलखल शब्द हो रहा हो। इस प्रकार शोर करते हुए वे सिंहगुफा नामक चोरपल्ली से बाहर निकले। निकलकर जहाँ राजगृह नगर था, वहाँ आये। आकर राजगृह नगर से कुछ दूर एक सघन वन में घुस गये। वहाँ घुस कर शेष रहे दिन को समाप्त करने लगे-सूर्य के अस्त हो जाने की प्रतीक्षा करने लगे।
२३-तए णं से चिलाए चोरसेणावई अद्धरत्तकालसमयंसि निसंतपडिनिसंतंसि पंचहिं चोरसएहिंसद्धिं माइयगोमुहिएहिं फलएहिं जाव मूइआहिं ऊरुघंटियाहिं जेणेव रायगिहे नयरे पुरच्छिमिल्ले दुवारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता उदगवत्थिं परामुसइ, परामुसित्ता आयंते चोक्खे परमसुइभूइ तालुग्घाडणिविजं आवाहेइ, आवाहित्ता रायगिहस्स दुवारकवाडे उदएणं अच्छोडेइ, अच्छोडित्ता कवाडं विहाडेइ, विहाडित्ता रायगिहं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता महया महया सद्देणं उग्घोसेमाणे उग्घोसेमाणे एवं वयासी
तत्पश्चात् चोरसेनापति चिलात आधी रात के समय, जब सब जगह शान्ति और सुनसान हो गया था, पाँच सौ चोरों के साथ, रीछ आदि के बालों से सहित होने के कारण कोमल गोमुखित (ढालें), छाती से बाँध कर यावत् जांघों पर घूघरे लटका कर राजगृह नगर के पूर्व दिशा के दरवाजे पर पहुँचा। पहुँच कर उसने जल की मशक ली। उसमें से जल की एक अंजलि लेकर आचमन किया, स्वच्छ हुआ, पवित्र हुआ, फिर ताला खोलने की विद्या का आवाहन करके राजगृह के द्वार के किवाड़ों पर पानी छिड़का। पानी छिड़क कर किवाड़