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________________ ४९०] [ज्ञाताधर्मकथा नगर से बाहर निकला। निकलकर जहाँ सिंहगुफा नामक चोरपल्ली थी, वहाँ पहुँचा। पहुँच कर चोरसेनापति विजय के पास उसकी शरण में जाकर रहने लगा। १५-तएणं से चिलाए दासचेडे विजयस्स चोरसेणावइस्स अग्ग-असि-लट्ठिग्गाहे जाए यावि होत्था। जाहे वि य णं से विजए चोरसेणाई गामघायं वा जाव [नगरघायं वा गोगहणं वा वंदिग्गहणं वा ] पंथकोट्टिवा काउं वच्चइ, ताहे वियणं से चिलाए दासचेडे सुबहुंपि हुकूवियबलं हयमहियं जाव पडिसेहेइ, पुणरवि लद्धटे कयकज्जे अणहसमग्गे सीहगुहं चोरपल्लिंहव्वमागच्छइ। तत्पश्चात् वह दास-चेट चिलात विजय नामक चोरसेनापति के यहाँ प्रधान-खड्गधारी या खड्ग और यष्टि का धारक हो गया। अतएव जब भी वह विजय चोरसेनापति ग्राम का घात करने के लिए [नगरघात करने के लिए, गायों का अपहरण करने या बंदियों को पकड़ने अथवा], पथिकों को मारने-कूटने के लिए जाता था, उस समय दास-चेट चिलात बहुत-सी कूविय (चोरी का माल छीनने के लिए आने वाली) सेना को हत एवं मथित करके रोकता था-भगा देता था और फिर उस धन आदि को लेकर अपना कार्य करके सिंहगुफा चोरपल्ली में सकुशल वापिस आ जाता था। १६-तए णं से विजए चोरसेणावई चिलायं तक्करं बहूईओ चोरविजाओ य चोरमंते य चोरमायाओ य चोरनिगडीओ य सिक्खावेइ। उस विजय चोरसेनापति ने चिलात तस्कर को बहुत-सी चोरविद्याएँ, चोरमंत्र, चोरमायाएँ और चोर-निकृतियाँ (चोरों के योग्य छल-कपट) सिखला दीं। १७-तए णं से विजए चोरसेणावई अन्नया कयाइं कालधम्मुणा संजुत्ते यावि होत्था। तए णं ताइं पंच चोरसयाई विजयस्स चोरसेणावइस्स महया महया इड्डी-सक्कार-समुदएणं णीहरणं करेंति, करित्ता बहूई लोइयाइं मयकिच्चाई करेइं, करित्ता जाव [ कालेणं] विगयसोया जाया यावि होत्था। । तत्पश्चात् विजय चोर किसी समय मृत्यु को प्राप्त हुआ-कालधर्म से युक्त हुआ। तब उन पांच सौ चोरों ने बड़े ठाठ और सत्कार के समूह के साथ विजय चोरसेनापति का नीहरण किया-श्मशान में ले जाने की क्रिया की। फिर बहुत-से लौकिक मृतककृत्य किये। कुछ समय बीत जाने पर वे शोकरहित हो गये। चिलात सेनापति बना १८-तए णं ताइं पंच चोरसयाइं अन्नयन सद्दावेंति, सद्दावित्ता एवं वयासी-एवं खलु अम्हं देवाणुप्पिया! विजए चोरसेणावई कालधम्मुणा संजुत्ते, अयं च णं चिलाए तक्करे विजयणं चोरसेणावइणा बहुओ चोरविज्जाओ य जाव' सिक्खाविए, तंसेयं खलु अम्हं देवाणुप्पिया!चिलायं तक्करं सीहगुहाए चोरपल्लीए चोरसेणावइत्ताए अभिसिंचित्तए। त्ति कटु अन्नमन्नस्स एयमटुं पडिसुणेति, पडिसुणित्ता चिलायं तक्करं तीए सीहगुहाए चोरसेणावइत्ताए अभिसिंचंति। तए णं से चिलाए चोरसेणावई जाए अहम्मिए जाव विहरइ। १.अ. १६, सूत्र १७९ २. अ.१८ सूत्र १६ ३. अ.१८ सूत्र ११
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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