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८. गृहि-धर्मी-गृहस्थधर्म को ही सर्वश्रेष्ठ मानने वाला और सतत् गृहस्थधर्म का चिन्तन करने वाला। ९.धर्मचिन्तक-सतत् धर्मशास्त्र का अध्ययन करने वाला। १०. अविरुद्ध-किसी के प्रति विरोध न रखने वाला।
अंगुत्तरनिकाय में भी अविरुद्धकों का उल्लेख है। प्रस्तुत मत के अनुयायी अन्य बाह्य क्रियाओं के स्थान पर मोक्ष, हेतु, विनय को आवश्यक' मानते हैं। वे देवगण, राजा, साधु, हाथी, घोड़े, गाय-भैंस-बकरी, गीदड़, कौआ, बगुले आदि को देखकर उन्हें भी प्रणाम करते थे। सूत्रकृतांक की टीका' में विनयवादी के बत्तीस भेद किये हैं। आगम साहित्य में विनयवादी परिव्राजकों का अनेक स्थलों पर उल्लेख है । वैश्यायन जिसने गोशालक पर तेजोलेश्या का प्रयोग किया था और मौर्यपुत्र तामली भी विनयवादी था। वह जीवनपर्यंत छठ-छठ तप करता था और सूर्याभिमुख होकर आतापना लेता था। काष्ठ का पात्र लेकर भिक्षा के लिए जाता और भिक्षा में केवल चावल ग्रहण करता था। वह जिसे भी देखता उसे प्रणाम करता था। पूरण तापसी भी विनयवादी ही था। बौद्ध साहित्य में पूरण कश्यप को महावीरकालीन छह धर्मनायकों में एक माना है। पर हमारी दृष्टि से वह पूर्ण काश्यप से पृथक् होना चाहिये। क्योंकि बौद्ध साहित्य का पूर्ण कश्यप अक्रियावादी भी था और वह नग्न था और उसके अस्सी हजार शिष्य थे।
११. विरुद्ध-परलोक और अन्य सभी मत-मतान्तरों का विरोध करनेवाला। अक्रियावादियों को 'विरुद्ध' कहा है, क्योंकि उनका मन्तव्य अन्य मतवादियों से विरुद्ध था। इनके चौरासी भेद भी मिलते हैं। अज्ञानवादी मोक्षप्राप्ति के लिए ज्ञान को निष्फल मानते थे। बौद्ध ग्रन्थों में 'पकुध कच्चायन' को अक्रियावादी कहा
१. औपपातिक ३८, पृ. १६९ २. अंमुत्तरनिकाय, ३, पृ. १७६ ३. सूत्रकृतांग १-१२-२ और उसकी टीका ४. उत्तराध्ययन टीका १८, पृ. २३० ५. सूत्रकृतांग टीका १-१२-पृ. २०९ (अ) ६. (क) आवश्यकनियुक्ति ४९४, (ख) आवश्यकचूर्णि, पृ. २९८
(ग) भगवतीसूत्रशतक १४ तृतीय खण्ड, पृ. ३७३-७४ ७. व्याख्याप्रज्ञप्ति ३-१ ८. वही. ३-२ ९. दीघनिकाय-सामयफल सूत्र, २ १०. बौद्ध पर्व (मराठी) प्र. १०, पृ. १२७ ११. (क) अनुयोगद्वार सूत्र २० (ख) औपपातिक सूत्र ३७, पृ. ६९ (ग) ज्ञाताधर्मकथा टीका, १५, पृ. १९४