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[ज्ञाताधर्मकथा
द्रव्य गाड़ी-गाड़ों में भरे।
१६-भरित्ता सगडीसागडं जोएंति, जोइत्ता जेणेव गंभीरपोयट्ठाणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सगडीसागडं मोएंति, मोइत्ता पोयवहणं सजेंति सजिता तेसिंउक्किट्ठाणं सद्द-फरिसरस-रूव-गंधाणं कट्ठस्स य तणस्स य पाणियस्स य तंदुलाण य समियस्स य गोरसस्स य जाव' अन्नेसिं च बहूणं पोयवहणपाउग्गाणं पोयवहणं भरेंति।
उक्त सब द्रव्य भरकर उन्होंने गाड़ी-गाड़े जोते। जोत कर जहाँ गंभीर पोतपट्टन था, वहाँ पहुँचे। पहुँच कर गाड़ी-गाड़े खोले। खोल कर पोतवहन तैयार किया। तैयार करके उन उत्कृष्ट शब्द, स्पर्श, रस, रूप
और गंध के द्रव्य तथा काष्ठ, तृण, जल, चावल, आटा, गोरस तथा अन्य बहुत-से पोतवहन के योग्य पदार्थ पोतवहन में भरे।
१७-भरित्ता दक्खिणाणुकूलेणं वाएणं जेणेव कालियदीवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पोयवहणं लंबेंति, लंबित्ता ताई उक्किट्ठाई सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधाइं एगट्ठियाहिं कालियदीवं उत्तारेंति, उत्तारित्ता जहिं जहिं च णं ते आसा आसयंति वा, सयंति वा, चिटुंति वा, तुयद॒ति वा, तहिं तहिचणं ते कोडुंबियपुरिसा ताओवीणाओयजाव-विचित्तवीणाओयअनाणि बहूणि सोइंदियपाउग्गाणि य दव्वाणि समुदीरेमाणा समुदीरेमाणा चिटुंति, तेसिं च परिपेरंतेण पासए ठवेंति, ठवित्ता णिच्चला णिप्फंदा तुसिणीया चिटुंति।
ये उपर्युक्त सब सामान पोतवहन में भर कर दक्षिण दिशा के अनुकूल पवन से जहाँ कालिक द्वीप था, वहाँ आये। आकर लंगर डाला। लंगर डाल कर उन उत्कृष्ट शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गंध के पदार्थों को छोटी-छोटी नौकाओं द्वारा कालिक द्वीप में उतारा। उतार कर वे घोड़े जहाँ-जहाँ बैठते थे, सोते थे और लोटते थे, वहाँ-वहाँ वे कौटुम्बिक पुरुष वह वीणा, विचित्र वीणा आदि श्रोत्रेन्द्रिय को प्रिय वाद्य बजाते रहने लगे तथा उनके पास चारों ओर जाल स्थापित कर दिए जाल बिछा दिए। जाल बिछा करके वे निश्चल, निस्पन्द और मूक होकर स्थित हो गए।
१८-जत्थ जत्थ ते आसा आसयंति वा जाव तुयटृति वा, तत्थ तत्थ णं ते कोडुंबियपुरिसा बहूणि किण्हाणि य५ कट्ठकम्माणि यजाव संघाइमाणि य अन्नाणिय बहूणि चक्खिदिएपाउग्गाणि यदव्वाणि ठवेंति, तेसिं परिपेरंतेणं पासए ठवेंति, ठवित्ता णिच्चला णिफंदा तुसिणीया चिटुंति।
जहाँ-जहाँ वे अश्व बैठते थे, यावत् लोटते थे, वहाँ-वहाँ उन कौटुम्बिक पुरुषों ने बहुतेरे कृष्ण वर्ण वाले यावत् शुक्ल वर्ण वाले काष्ठकर्म यावत् संघातिम तथा अन्य बहुत-से चक्षु-इन्द्रिय के योग्य पदार्थ रख दिए तथा उन अश्वों के पास चारों ओर जाल बिछा दिया और वे निश्चल और मूक होकर छिप रहे।
१९-जत्थ जत्थ ते आसा आसयंति वा, सयंति वा, चिटुंति वा, तुयटृति वा, तत्थतत्थ णं ते कोडुंबियपुरिसा तेसिं बहूणं कोट्ठपुडाण य अन्नेसिं च घाणिंदियपाउग्गाणं दव्वाणं पुंजे य णियरे य करेंति, करित्ता तेसिं परिपेरंते जाव चिटुंति।
१. अ.८ सूत्र ५५
२. अ. १७ सूत्र १४-१५