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अश्वों का अपहरण
१२ - ते संजत्ताणावावाणियगा एवं वयासी - 'तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! गामागर जाव आहिंडह, लवणसमुद्दं च अभिक्खणं अभिक्खणं पोयवहणेणं ओगाहह, तं अस्थि याइं केइ भे कहिंचि अच्छेरए दिट्ठपुव्वे ?'
[ ज्ञाताधर्मकथा
तणं संजत्ताणावावाणिया कणगकेउं रायं एवं वयासी - ' एवं खलु अम्हे देवाणुप्पिया! इहेव हत्थिसीसे नयरे परिवसामो तं चेव जाव कालियदीवंतेणं संवूढा, तत्थ णं बहवे हिरण्णागरा य जाव' बहवे तत्थ आसे, किं ते हरिरेणुसोणिसुत्तगा जाव' अणेगाई जोबणाई उब्भमंति । तए णं सामी ! अम्हेहिं कालियदीवे ते आसा अच्छेरए दिट्ठा ।'
फिर राजा ने उन सांयात्रिक नौकावणिकों से इस प्रकार कहा - 'देवानुप्रिय ! तुम लोग ग्रामों में यावत् आकरों में (सभी प्रकार की वस्तियों में) घूमते हो और बार-बार पोतवहन द्वारा लवणसमुद्र में अवगाहन करते हो, तुमने कहीं कोई आश्चर्यजनक - अद्भुत - अनोखी वस्तु देखी है ?'
तब सांयात्रिक नौकावणिकों ने राजा कनककेतु से कहा - 'देवानुप्रिय ! हम लोग इसी हस्तिशीर्ष नगर के निवासी हैं; इत्यादि पूर्ववत् कहना चाहिए, यावत् हम कालिकद्वीप के समीप गए। उस द्वीप में बहुत
चाँदी की खानें यावत् बहुत-से अश्व हैं। वे अश्व कैसे हैं? नील वर्ण वाली रेणु के समान और श्रोणिसूत्रक के समान श्याम वर्ण वाले हैं। यावत् वे अश्व हमारी गंध से कई योजन दूर चले गए। अतएव हे स्वामिन्! हमने कालिकद्वीप में उन अश्वों को आश्चर्यभूत (विस्मय की वस्तु) देखा है।'
१३ - तए णं के कणगकेऊ तेसिं संजत्ताणावावाणियगाणं अंतिए एयमट्ठ सोच्चा णिसम्म ते संजत्ताणावावाणियए एवं वयासी - 'गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! मम कोडुंबिय - पुरिसेहिं सद्धिं कालियदीवाओ ते आसे आणेह ।'
तए णं ते संजत्ता कणगकेउं रायं एवं वयासी - ' एवं सामी! त्ति कट्टु आणाए विणएणं वयणं पडिसुर्णेति ।'
तत्पश्चात् कनककेतु राजा ने उन सांयात्रिकों से यह अर्थ सुन कर उन्हें कहा-' -'देवानुप्रियो ! तुम मेरे कौटुम्बिक पुरुषों के साथ जाओ और कालिकद्वीप से उन अश्वों को यहाँ ले आओ।'
तब सांयात्रिक वणिकों ने कनककेतु राजा से इस प्रकार कहा - 'स्वामिन्! बहुत अच्छा ।' ऐसा कहकर उन्होंने राजा का वचन आज्ञा के रूप में विनयपूर्वक स्वीकार किया ।
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१४ – तए णं कणगकेऊ राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी - 'गच्छह णं तुभे देवाप्पिया! संजत्ताणावावाणिएहिं सद्धिं कालियदीवाओ मम आसे आणेह ।' ते वि पडिसुर्णेति । तए णं ते कोडुंबियपुरिसा सगडीसागडं सज्जेंति, सज्जित्ता तत्थ णं बहूणं वीणाण य, वल्लकीण य, भामरीण य, कच्छभीण य, भंभाण य, छब्भामरीण य, विचित्तवीणाण य, अन्नेसिं च बहूणं सोइंदियपाउग्गाणं दव्वाणं सगडीसागडं भरेंति ।
१२. अ. १७ सूत्र ९