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________________ ४४०] [ज्ञाताधर्मकथा तए णं ते कोडुंबियपुरसा। जाव पच्चप्पिणंति। तत्पश्चात् पाण्डु राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और बुलाकर यह आदेश दिया-'देवानुप्रियो! हस्तिनापुर नगर में शृंगाटक, त्रिक, चतुष्क, चत्वर, महापथ और पथ आदि में जोर-जोर के शब्दों से घोषणा करते-करते इस प्रकार कहो-'हे देवानुप्रियो (लोगो) ! आकाशतल (अगासी) पर सुख से सोये हुए युधिष्ठिर राजा के पास से द्रौपदी देवी को न जाने किस देव, दानव, किंपुरुष किन्नर, महोरग या गंधर्व देवता ने हरण किया है, ले गया है, या खींच ले गया है! तो हे देवानुप्रियो! जो कोई द्रौपदी देवी की श्रुति, क्षुति या प्रवृत्ति बताएगा, उस मनुष्य को पाण्डु राजा विपुल सम्पदा का दान देंगे-ईनाम देंगे। इस प्रकार की घोषणा करो। घोषणा करके मेरी यह आज्ञा वापिस लौटाओ।' तब कौटुम्बिक पुरुषों ने उसी प्रकार घोषणा करके यावत् आज्ञा वापिस लौटाई। १६०–तए णं से पंडू राया दोवईए देवीए कत्थइ सुई वा जाव अलभमाणे कोंतिं देविं सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी-'गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिए! बारवइंनयरिं कण्हस्स वासुदेवस्स एयमटुं णिवेदेहि। कण्हे णं परं वासुदेवे दोवईए देवीए मग्गणगवेसणं करेग्जा, अन्नहा न नजइ दोवईए देवीए सुई वा खुई वा पवित्तिं वा उवलभेजा।' पूर्वोक्त घोषणा कराने के पश्चात् भी पाण्डु राजा द्रौपदी देवी की कहीं भी श्रुति यावत् समाचार न पा सके तो कुन्ती देवी को बुलाकर इस प्रकार कहा–'हे देवानुप्रिये! तुम द्वारवती (द्वारिका) नगरी जाओ और कृष्ण वासुदेव को यह अर्थ निवेदन करो। कृष्ण वासुदेव ही द्रौपदी देवी की मार्गणा-गवेषणा करेंगे, अन्यथा द्रौपदी देवी की श्रुति, क्षुति या प्रवृत्ति अपने को ज्ञात हो, ऐसा नहीं जान पड़ता।' अर्थात् हम द्रौपदी का पता नहीं पा सकते, केवल कृष्ण ही उसका पता लगा सकते हैं। १६१-तए णं कोंती देवी पंडुरण्णा एवं वुत्ता समाणी जाव पडिसुणइ, पडिसुणित्ता ण्हाया कयबलिकम्मा हत्थिखंधवरगया हत्थिणाउरं णयरं मझमझेणं णिग्गच्छइ, णिग्गछित्ता कुरुजणवयं मझमझेणं जेणेव सुरट्ठजणवए, जेणेव बारवई णयरी, जेणेव अग्गुजाणे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता हत्थिखंधाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरहित्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी-'गच्छण णं तुब्भे देवाणुप्पिया! बारवई णयरिं जेणेव कण्हस्स वासुदेवस्स गिहे तेणेव अणुपविसह, अणुपविसित्ता कण्हं वासुदेवं करयलपरिग्गहियं एवं वयह–'एवं खलु सामी! तुब्भं पिउच्छा कोंती देवी हत्थिणाउराओ नयराओ इह हव्वमागया तुब्भं दंसणं कंखति।' पाण्डु राजा के द्वारका जाने के लिए कहने पर कुन्ती देवी ने उनकी बात यावत् स्वीकार की। वह नहा-धोकर बलिकर्म करके, हाथी के स्कंध पर आरूढ़ होकर हस्तिनापुर नगर के मध्य में होकर निकली। निकल कर कुरु देश के बीचोंबीच होकर जहाँ सुराष्ट्र जनपद था, जहाँ द्वारवती नगरी थी और नगर के बाहर श्रेष्ठ उद्यान था, वहाँ आई। आकर हाथी के स्कन्ध से नीचे उतरी। उतरकर कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और उनसे इस प्रकार कहा-'देवानुप्रियो ! तुम जहाँ द्वारका नगरी है वहाँ जाओ, द्वारका नगरी के भीतर प्रवेश करो। प्रवेश करके कृष्ण वासुदेव को दोनों हाथ जोड़कर, मस्तक पर अंजलि करके इस प्रकार कहना–'हे स्वामिन् ! आपके पिता की बहन (भुआ) कुन्ती देवी हस्तिनापुर नगर से यहाँ आ पहुंची हैं और तुम्हारे दर्शन की इच्छा
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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