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[ज्ञाताधर्मकथा
तत्पश्चात् अर्थात् सब आगन्तुक अतिथि राजाओं को यथास्थान ठहरा कर द्रुपद राजा ने काम्पिल्यपुर नगर में प्रवेश किया। प्रवेश करके विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम भोजन तैयार करवाया। फिर कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर कहा-'देवानुप्रियो! तुम जाओ और वह विपुल अशन, पान, खादिम, स्वादिम', सुरा, मद्य, मांस, सीधु और प्रसन्ना तथा प्रचुर पुष्प, वस्त्र, गंध, मालाएँ एवं अलंकार वासुदेव आदि हजारों राजाओं के आवासों में ले जाओ।' यह सुनकर वे, सब वस्तुएँ ले गये।
११३-तए णं वासुदेवपामुक्खा तं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं जाव पसन्नं च आसाएमाणा आसाएमाणा विहरंति, जिमियभुत्तुत्तरागया वि य णं समाणा आयंता जाव सुहासणवरगया बहुहिं गंधव्वेहिं जाव विहरंति।
तब वासुदेव आदि राजा उस विपुल अशन, पान, खादिम, स्वादिम यावत् प्रसन्ना का पुनः पुनः आस्वादन करते हुए विचरने लगे। भोजन करने के पश्चात् आचमन करके यावत् सुखद आसनों पर आसीन होकर बहुत-से गंधर्वो से संगीत कराते हुए विचरने लगे। स्वयंवर : घोषणा
११४-तए णं से दुवए पुव्वावरण्हकालसमयंसि कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी-'गच्छह णं तुमे देवाणुप्पिया! कंपिल्लपुरे संघाडग जाव पहेसु वासुदेवपामुक्खाण य रायसहस्साणं आवासेसु हत्थिखंधवरगया महया महया सद्देणं जाव उग्घोसेमाणा उग्घोसेमाणा एवं वदह–'एवं खलु देवाणुप्पिया! कल्लं पाउप्पभायाए दुवयस्सरण्णोधूयाए, चुलणीए देवीए अत्तयाए, धट्ठजुण्णस्स भगिणीए दोवईए रायवरकण्णाए सयंवरे भविस्सइ, तं तुब्भेणं देवाणुप्पिया! दुवयं रायाणंअणुगिण्हेमाणा हाया जाव विभूसिया हत्थिखंधवरगया सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिजमाणेणं सेयवरचामराहिं वीइज्जमाणा हयगयरहपवरजोहकलियाए चउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिवुडा महया भडचडगरेणंजाव परिक्खित्ताजेणेव सयंवरमंडवे तेणेव उवागच्छह, उवागच्छित्ता पत्तेयं पत्तेयं नामंकेसु आसणेसु निसीयह, निसीइत्ता दोवइंरायवरकण्णं पडिवालेमाणा पाडिवालोमाणा चिट्ठह त्ति घोसणं घोसेह, मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह।'तएणं कोडुंबिया तहेव जाव पच्चप्पिणंति।
तत्पश्चात् द्रुपद राजा ने पूर्वापराह्न काल (सायंकाल) के समय कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। बुलाकर इस प्रकार कहा-'देवानुप्रियो! तुम जाओ और कांपिल्यपुर नगर के शृंगाटक आदि मार्गों में तथा वासुदेव आदि हजारों राजाओं के आवासों में, हाथी के स्कंध पर आरूढ़ होकर बुलंद आवाज से यावत् बारबार उद्घोषणा करते हुए इस प्रकार कहो-'देवानुप्रियो! कल प्रभात में द्रुपद राजा की पुत्री, चुलनी देवी की आत्मजा और धृष्टद्युम्न की भगिनी द्रौपदी राजवरकन्या का स्वयंवर होगा। अतएव हे देवानुप्रियो। आप सब
१. सुरा, मद्य, सीधु और प्रसन्ना, यह मदिरा की ही जातियाँ हैं। स्वयंवर में सभी प्रकार के राजा और उनके सैनिक आदि आये थे। द्रुपद राजा ने उन सबका उनकी आवश्यक वस्तुओं से सत्कार किया। इससे यह नहीं समझना चाहिए कि कृष्णजी स्वयं मदिरा आदि का सेवन करते थे। यह वर्णन सामान्य रूप से है। कृष्णजी सभी आगत राजाओं में प्रधान थे, अतएव उनका नामोल्लेख विशेष रूप से हुआ प्रतीत होता है।