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________________ सोलहवां अध्ययन : द्रौपदी] [४२३ वापिस सौंपी। आवास-व्यवस्था १०९-तए णं से दुवए कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सहावित्ता एवं वयासी-'ख्यिामेव भो देवाणुप्पिया! वासुदेवपामोक्खाणं बहुणं रायसहस्साणं आवासे करेह।' ते वि करित्ता पच्चप्पिणंति। तत्पश्चात् द्रुपद राजा ने फिर कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। बुलाकर उनसे कहा-'देवानुप्रियो! शीघ्र ही वासुदेव वगैरह बहुसंख्यक सहस्रों राजाओं के लिए आवास तैयार करो।' उन्होंने आवास तैयार करके आज्ञा वापिस लौटाई। ११०-तए णं दुवए राया वासुदेवपामुक्खाणं बहूणं रायसहस्साणं आगमणं जाणेत्ता पत्तेयं पत्तेयं हत्थिखंधंवरगए जाव परिवुडे अग्धं च पजं च गहाय सव्विड्ढीए कंपिल्लपुराओ निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव ते वासुदेवापामोक्खा बहवे रायसहस्सा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ताई वासुदेवपामुक्खाइं अग्घेण य पजेण य सक्कारेइ, सम्माणेइ, सक्कारित्ता सम्माणित्ता तेसिं वासुदेवपामुक्खाणं पत्तेयं पत्तेयं आवासे वियरइ। . तत्पश्चात् द्रुपद राजा वासुदेव प्रभृति बहुत से राजाओं का आगमन जानकर, प्रत्येक राजा का स्वागत करने के लिए हाथी के स्कंध पर आरूढ़ होकर यावत् सुभटों के परिवार से परिवृत होकर अर्घ्य (पूजा की सामग्री) और पाद्य (पैर धोने के लिए पानी) लेकर, सम्पूर्ण, ऋद्धि के साथ कांपिल्यपुर से बाहर निकला। निकलकर जिधर वासदेव आदि बहसंख्यक हजारों राजा थे, उधर गया। वहाँ जाकर उन वासदेव प्रभूति का अर्घ्य और पाद्य से सत्कार-सम्मान किया। सत्कार-सम्मान करके उन वासुदेव आदि को अलग-अलग आवास प्रदान किए। १११-तए णं ते वासुदेवपामोक्खा जेणेव सया सया आवासा तेणेव उवागच्छंति. उवागच्छित्ता हत्थिखंधेहितो पच्चोरुहंति, पच्चोरुहित्ता पत्तेयं पत्तेयं खंधावारनिवेसं करेंति, करित्ता सए सए आवासे अणुपविसंति, अणुपविसित्ता सएसु सएसु आवासेसु आसणेसु य सयणेसु य सत्रिसन्ना य संतुयट्ठा य बहूहिं गंधव्वेहि य नाडएहि य उवगिजमाणा य उवणच्चिजमाणा य विहरंति। __तत्पश्चात् वे वासुदेव प्रभृति नृपति अपने-अपने आवासों में पहुँचे। पहुँचकर हाथियों के स्कंध से नीचे उतरे। उतर कर सबने अपने-अपने पड़ाव डाले और अपने-अपने आवासों में प्रविष्ट हुए। आवासों में प्रवेश करके अपने-अपने आवासों में आसनों पर बैठे और शय्याओं पर सोये। बहुत-से गंधों से गान कराने लगे और नट नाटक करने लगे। ___११२-तए णं से दुवए राया कंपिल्लपुरं नगरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता, विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावित्ता, कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सहावित्ता एवं वयासी-'गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया! विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं सुरं च मज्जं च मंसंचसीधुंच पसण्णंच सुबहुपुष्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारंच वासुदेवपामोक्खाणं रायसहस्साणं आवासेसु साहरह।' ते वि साहरंति।
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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