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सोलहवाँ अध्ययन : द्रौपदी ]
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तब उन गोपालिका आर्या ने सुकुमालिका आर्या से इस प्रकार कहा - ' हे आर्ये! हम निर्ग्रन्थ श्रमणियाँ हैं, ईर्यासमिति वाली यावत् गुप्त ब्रह्मचारिणी हैं। अतएव हमको गांव यावत् सन्निवेश (वस्ती) से बाहर जाकर बेले- बेले की तपस्या करके, सूर्याभिमुख होकर आतापना लेते हुए विचरना नहीं कल्पता । किन्तु वाड़ से घिरे हुए उपाश्रय के अन्दर ही, संघाटी (वस्त्र) से शरीर को आच्छादित करके या साध्वियों के परिवार के साथ रहकर तथा पृथ्वी पर दोनों पदतल समान रख कर आतापना लेना कल्पता है । '
७१ - तए णं सा सूमालिया गोवालियाए अज्जाए एयमट्टं नो सद्दहइ, नो पत्तियइ, नो रोएइ, एयमठ्ठे असद्दहमाणी अपत्तियमाणी अहोएमाणी सुभूमिभागस्स उज्जाणस्स अदूरसामंते छट्ठछट्टेणं जाव विहरइ ।
तब सुकुमालिका को गोपालिका आर्या की इस बात पर श्रद्धा नहीं हुई, प्रतीति नहीं हुई, रुचि नहीं हुई। वह सुभूमिभाग उद्यान से कुछ समीप में निरन्तर बेले - बेले का तप करती हुई यावत् आतापना लेती हुई विचरने लगी ।
सुकुमालिका का निदान
७२ – तत्थं णं चंपाए नयरीए ललिया नामं गोट्ठी परिवसइ नरवइदिण्णवि (प) यारा, अम्मापिइनिययप्पिवासा, वेसविहारकयनिकेया, नाणाविहअविणयप्पहाणा अड्डा जाव अपरिभूया ।
चम्पा नगरी में ललिता (क्रीड़ा में संलग्न रहने वाली) एक गोष्ठी (टोली) निवास करती थी। राजा ने उसे इच्छानुसार विचरण करने की छूट दे रक्खी थी। वह टोली माता-पिता आदि स्वजनों की परवाह नहीं करती थी । वेश्या का घर ही उसका घर था । वह नाना प्रकार का अविनय (अनाचार ) करने में उद्धत थी, वह धनाढ्य लोगों की टोली थी और यावत् किसी से दबती नहीं थी अर्थात् कोई उसका पराभव नहीं कर सकता
था ।
७३–तत्थं णं चंपाए नयरीए देवदत्ता नामं गणिया होत्था सुकुमाला जहा अंड - णाए । तए णं तीसे ललियाए गोट्ठीए अन्नया पंच गोट्ठिल्लपुरिसा देवदत्ताए गणियाए सद्धिं सुभूमिभागस्स उज्जाणस्स उज्जाणसिरिं पच्चणुब्भवमाणा विहरंति । तत्थ णं एगे गोट्ठिल्लपुरिसे देवदत्तं गणियं उच्छंगे धरइ, एगे पिट्ठओ आयवत्तं धरेइ, एगे पुप्फपूरयं रएइ, एगे पाए रएइ, एगे चामरुक्खेवं करे |
उस चम्पा नगरी में देवदत्ता नाम की गणिका रहती थी। वह सुकुमाल थी। (तीसरे) अंडक अध्ययन के अनुसार उसका वर्णन समझ लेना चाहिए।
एक बार उस ललिता गोष्ठी के पाँच गोष्ठिक पुरुष देवदत्ता गणिका के साथ, सुभूमिभाग उद्यान की लक्ष्मी (शोभा) का अनुभव कर रहे थे। उनमें से एक गोष्ठिक पुरुष ने देवदत्ता गणिका को अपनी गोद में बिठलाया, एक ने पीछे से छत्र धारण किया, एक ने उसके मस्तक पर पुष्पों का शेखर रचा, एक उसके पैर (महावर रंगने लगा, और एक उस पर चामर ढोरने लगा ।
७४ - तए णं सा सूमालिया अज्जा देवदत्तं गणियं पंचहिं गोट्ठिल्लपुरिसेहिं सद्धिं उरालाई माणुस्सगाइं भोगभोगाई भुंजमाणिं पासइ, पासित्ता इमेयारूवे संकप्पे समुप्पज्जित्था - 'अहो णं