SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 470
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सोलहवाँ अध्ययन : द्रौपदी ] [ ४०९ टुकड़ों का वस्त्र पहने था। उसके साथ में सिकोरे का टुकड़ा और पानी के घड़े का टुकड़ा था। उसके बाल बिखरे हुए - अस्तव्यस्त थे। हजारों मक्खियाँ उसके मार्ग का अनुसरण कर रहीं थीं - उसके पीछे भिनभिनाती हुई उड़ रही थीं। ६०—तए णं से सागरदत्ते कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ एवं वयासी - 'तुब्भे णं देवाणुप्पिया! एयं दमगपुरिसं विउलेणं असणपाणखाइमसाइमेणं पलोभेह, पलोभित्ता गिहं अणुप्पवेसेह, अणुप्पवेसित्ता खंडगमल्लगं खंडघडगं च से एगंते एडेह, एडित्ता अलंकारियकम्मं कारेह, कारित्ता हणयं कयबलिकम्मं जाव सव्वालंकारविभूसियं करेह, करित्ता मणुण्णं असणं पाणं खाइमं साइमं भोयावेह, भोयावित्ता मम अंतियं उवणेह ।' तत्पश्चात् सागरदत्त ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। बुलाकर उनसे कहा- ' -'देवानुप्रियो ! तुम जाओ और उस द्रमक पुरुष (भिखारी) को विपुल अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य का लोभ दो । लोभ देकर घर के भीतर लाओ। भीतर लाकर सिकोरे और घड़े के टुकड़े को एक तरफ फेंक दो । फैंक कर आलंकारिक कर्म (हजामत आदि विभूषा) कराओ। फिर स्नान करवाकर, बलिकर्म करवा कर, यावत् सर्व अलंकारों से विभूषित करो। फिर मनोज्ञ अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य भोजन जिमाओ। भोजन जिमाकर मेरे निकट ले आना ।' ६१ – तए णं कोडुंबियपुरिसा जाव पडिसुणेंति, पडिसुणित्ता जेणेव दमगपुरिसे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तं दमगं असणं पाणं खाइमं साइम उवप्पलोभेंति, उवप्पलोभित्ता सयं गिहं अणुप्पवेसेंति, अणुप्पवेसित्ता तं खंडमल्लगं खंडघडगं च तस्स दमगपुरिसस्स एगंते एडेंति । तणं से दमगे तं खंडमल्लगंसि खंडघडगंसि य एगंते एडिज्जमाणंसि महया महया सद्देणं आरसइ । तब उन कौटुम्बिक पुरुषों ने सागरदत्त की आज्ञा अंगीकार की। अंगीकार करके वे उस भिखारी पुरुष के पास गये । जाकर उस भिखारी को अशन, पान, खादिम और स्वादिम भोजन का प्रलोभन दिया । प्रलोभन देकर उसे अपने घर में ले आए। लाकर उसके सिकोरे के टुकड़े को तथा घड़े के ठीकरे को एक तरफ डाल दिया । सिकोरे का टुकड़ा और घड़े का टुकड़ा एक जगह डाल देने पर वह भिखारी जोर-जोर से आवाज करके रोने-चिल्लाने लगा। (क्योंकि वही उसका सर्वस्व था । ) ६२ - तए णं से सागरदत्ते तस्स दमगपुरिसस्स तं महया महया आरसियसद्दं सोच्चा निसम्म कोडुंबियपुरिसे एवं वयासी - ' किं णं देवाणुप्पिया! एस दमगपुरिसे महया महया सद्देणं आरसइ ?' तणं ते कोडुंबियपुरिसा एवं वयासी - 'एस णं सामी ! तंसि खंडमल्लगंसि खंडघडगंसि य एगंते एडिज्जमाणंसि महया महया सद्देणं आरसइ । ' तए णं से सागरदत्ते सत्थवाहे ते कोडुंबियपुरिसे एवं वयासी—' मा णं तुब्भे देवाणुप्पिया! एयस्स दमगस्स तं खंडं जाव एडेह, पासे ठवेह, जहा णं पत्तियं भवइ ।' ते. वि तहेव ठविंति । तत्पश्चात् सागरदत्त ने उस भिखारी पुरुष के ऊँचे स्वर से चिल्लाने का शब्द सुनकर और समझकर
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy