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[ज्ञाताधर्मकथा
यावत् सब अलंकारों से विभूषित किया। पुरुषसहस्रवाहिनी पालकी पर आरूढ़ किया, आरूढ़ करके मित्रों एवं ज्ञातिजनों आदि से परिवृत होकर यावत् पूरे ठाठ के साथ अपने घर से निकला। निकल कर चम्पानगरी के मध्य भाग में होकर जहाँ सागरदत्त का घर था, वहाँ पहुँचा। वहाँ पहुँच कर सागर पुत्र को पालकी से नीचे उतारा। फिर उसे सागरदत्त सार्थवाह के समीप ले गया। सुकुमालिका का विवाह
४५-तए णं सागरदत्ते सत्थवाहे विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावित्ता जाव संमाणेत्ता सागरगं दारगं सूमालियाए दारियाए सद्धिं पट्टयं दुरूहावेइ, दुरूहावित्ता सेयापीयएहिं कलसेहिं मज्जावेइ, मजावित्ता होमं करावेइ, करावित्ता सागरं दारयं सूमालियाए दारियाए पाणिं गेण्हावेइ।
तत्पश्चात् सागरदत्त सार्थवाह ने विपुल अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य भोजन तैयार करवाया। तैयार करवा कर यावत् उनका सम्मान करके सागर पुत्र को सुकुमालिका पुत्री के साथ पाट पर बिठलाया। बिठला कर श्वेत और पीत अर्थात् चांदी और सोने के कलशों से स्नान करवाया। स्नान करवा कर होम करवाया। होम के बाद सागर पुत्र को सुकुमालिका पुत्री का पाणिग्रहण करवाया (विवाह की विधि सम्पन्न करवाई)।
४६-तए णं सागरदारए सूमालियाए दारियाए इमं एयारूवं पाणिफासं पडिसंवेदेइ से जहानामए-असिपत्ते इ वा जाव मुम्मुरे इ वा, इत्तो अणिद्वैतराए चेव पाणिफासं पडिसंवेदेइ। तए णं से सागरए अकामए अवसव्वसे तं मुहूत्तमित्तं संचिट्ठइ।
उस समय सागर पुत्र को सुकुमालिका पुत्री के हाथ का स्पर्श ऐसा प्रतीत हुआ मानो कोई तलवार हो अथवा यावत् मुर्मुर आग हो। इतना ही नहीं बल्कि इससे भी अधिक अनिष्ट हस्त-स्पर्श का वह अनुभव करने लगा। किन्तु उस समय वह सागर बिना इच्छा के विवश होकर उस हस्तस्पर्श का अनुभव करता हुआ मुहूर्त्तमात्र (थोड़ी देर) बैठा रहा।
विवेचन-प्रस्तुत सूत्र में संक्षिप्त पाठ ही दिया गया है। अन्यत्र विस्तृत पाठ है, जो इस प्रकार है
(असिपत्ते इ वा) करपत्ते इ वा खुरपत्ते इ वा कलंबचीरियापत्त इ वा सत्तिअग्गे इ वा कोंतग्गे इ वा तोमरग्गे इ वा भिंडिमालग्गे इ वा सूचिकलावए इ वा विच्छुयडंके इ वा कविकच्छू इ वा इंगाले इ वा मुम्मुरे इ वा अच्ची इ वा जाले इ वा अलाए इ वा सुद्धागणी इ वा, भवे एयारूवे?
नो इणढे समढें। एत्तो अणिट्टतराए चेव अकंततराए चेव अधियतराए चेव अमणुण्णतराए चेव अमणामतराए चेव
-टीका-(अभयदेवसूरि)-अंगसुत्ताणि तृ. भाग संक्षिप्त पाठ और विस्तृत पाठ के तात्पर्य में कोई अन्तर नहीं है। दोनों पाठों में सुकुमालिका के हाथ की दो विशेषताएं प्रदर्शित की गई हैं-तीक्ष्णता और उष्णता। संक्षिप्त पाठ में इन दोनों विशेषताओं को प्रदर्शित करने के लिए 'असिपत्ते इ वा' और 'मुम्मुरे इ वा' पदों का प्रयोग किया गया है, जब कि इन्हीं दोनों विशेषताओं को दिखाने के लिए विस्तृत पाठ में अनेक-अनेक उदाहरणों का प्रयोग हुआ है।
किन्तु संक्षिप्त पाठ में 'जाव मुम्मरे इ वा' है, जबकि विस्तृत पाठ में अन्त में 'सुद्धगणी इ वा' पाठ