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सोलहवां अध्ययन : द्रौपदी] होकर सिद्धि प्राप्त करेगा।
२४-'तं धिरत्थुणं अजो! णागसिरीए माहणीए अधनाए अपुनाए जावणिंबोलियाए, जाए णं तहारूवे साहू धम्मरुई अणगारे मासखमणपारणगंसि सालइएणं जाव गाढेणं अकाले चेव जीवियाओ ववरोविए।'
'तो हे आर्यो! उस अधन्य अपुण्य, यावत् निंबोली के समान कटुक नागश्री ब्राह्मणी को धिक्कार है, जिसने तथारूप साधु धर्मरुचि अनगार को मासखमण के पारणक में शरद् सम्बन्धी यावत् तेल से व्याप्त कटुक, विषाक्त तुंबे का शाक देकर असमय में ही मार डाला।'
२५-तएणं समणा निग्गंथा धम्मघोसाणं थेराणं अंतिए एयमढं सोच्चा णिसम्म चंपाए सिंघाडग-तिग जाव [चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु] बहुजणस्स एवमाइक्खंति'धिरत्थुणं देवाणुप्पिया! नागसिरीए माहणीए जावणिंबोलियाए, जाए णंतहारूवे साहू साहुरूवे सालइएणं जीवियाओ ववरोविए।'
___ तत्पश्चात् उन निर्ग्रन्थ श्रमणों ने धर्मघोष स्थविर के पास यह वृत्तान्त सुनकर और समझ कर चम्पानगरी के शृंगाटक, त्रिक, चौक, चत्वर, चतुर्मुख, राजमार्ग, गली आदि मार्गों में जाकर यावत् बहुत लोगों से इस प्रकार कहा-'धिक्कार है उस यावत् निंबोली के समान कटुक नागश्री ब्राह्मणी को; जिसने उस प्रकार के साधु और साधु रूप धारी मासखमण का तप करने वाले धर्मरुचि नामक अनगार को शरद् सम्बन्धी यावत् विष सदृश कटुक शाक देकर मार डाला।'
२६-तए णं तेसिं समणाणं अंतिए एयमढे सोच्चा णिसम्म बहुजणो अन्नमन्नस्स एवामाइक्खइ, एवं भासइ-'धिरत्थु णं नागसिरीए माहणीए जाव जीवियाओ ववरोविए।'
तब उन श्रमणों से इस वृत्तान्त को सुन कर और समझ कर बहुत-से लोग आपस में इस प्रकार कहने लगे और बातचीत करने लगे-'धिक्कार है उस नागश्री ब्राह्मणी को, जिसने यावत् मुनि को मार डाला।' नागश्री की दुर्दशा
२७-तए णं ते माहणा चंपाए नयरीए बहुजणस्स अंतिए एयमढं सोच्चा णिसम्म आसुरुत्ता जाव [रुट्ठा कुविया चंडिक्किया] मिसिमिसेमाणा जेणेव नागसिरी माहणी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता णागसिरिं माहणिं एवं वयासी
___'हं भो नागसिरी! अपत्थियपत्थिए दुरंतपंतलक्खणे हीणपुण्णचाउद्दसे थिरत्थु णं तव अधन्नाए अपुन्नाए दूभगाए दूभगसत्ताए दूभग-णिंबोलियाए, जाए णं तुमे तहारूवे साहू साहुरूवे मासखमणपारणगंसि सालइएणं जाव ववरोविए।' उच्चावएहिं अक्कोसणाहिं अक्कोसंति, उच्चावयाहिं उद्धंसणाहिं उद्धंसेंति, उच्चावयाहिं णिब्भत्थणाहिं णिब्भत्थंति, उच्चावयाहिं णिच्छोडणाहिं णिच्छोडेंति, तज्जेंति, तालेंति, तज्जेत्ता तालेत्ता सयाओ गिहाओ निच्छुभंति।
तत्पश्चात् वे सोम, सोमदत्त और सोमभूति ब्राह्मण, चम्पानगरी में बहुत-से लोगों से यह वृत्तान्त सुनकर और समझकर, कुपित हुए यावत् [क्रोध से जल उठे, रुष्ट हुए, अतीव कुपित हुए, तीव्र क्रोध के