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________________ ३८२] [ज्ञाताधर्मकथा प्रातराश (प्रात:कालीन भोजन) करता हुआ अंगदेश के बीचोंबीच होकर देश की सीमा पर जा पहुँचा। वहाँ पहुँच कर गाड़ी-गाड़े खोले। पड़ाव डाला। फिर कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर इस प्रकार कहाउपयोगी चेतावनी ९-'तुब्भे णं देवाणुप्पिया! मम सत्थनिवेसंसि महया महया सद्देणं उग्घोसेमाणा उग्रोसेमाणा एवं वदह ‘एवंखलु देवाणुप्पिया! इमीसे आगामियाए छिन्नावायाए दीहमद्धए अडवीए बहुमज्झदेसभाए बहवे णंदिफला नामं रुक्खा पन्नत्ता-किण्हा जाव पत्तिया पुफिया फलिया हरिया रेरिजमाणा सिरीए अईवअईव उवसोभेमाणा चिटुंति, मणुण्णा वन्नेणं, मणुण्णा गंधेणं, मणुण्णा रसेणं, मणुण्णा फासेणं मणुण्णा छायाए, तंजोणंदेवाणुप्पिया!तेसिंनंदिफलाणंरुक्खाणंमूलाणि वा कंदाणि वा तयाणि वा पत्ताणि वा पुष्पाणि वा फलाणि वा बीयाणि वा हरियाणि वा आहारेइ, छायाए वा वीसमइ, तस्स णं आवाए भद्दए भवइ, ततो पच्छा परिणममाणा परिणममाणाअकाले चेव जीवियाओ ववरोवेंति।तं माणं देवाणुप्पिया! केइ तेसिं नदिफलाणं मूलाणि वा जाव छायाए वावीसमउ मा णंसे ऽवि अकाले चेव जीवियाओ ववरोविजस्सइ।तुब्भे णं देवाणुप्पिया! अन्नेसिं रुक्खाणं मूलाणि य जाव हरियाणि य आहारेइ, छायासु वीसमह, त्ति घोसणं घोसेह।' जाव पच्चप्पिणंति। 'देवानुप्रियो ! तुम मेरे सार्थ के पड़ाव में ऊँचे-ऊँचे शब्दों से बार-बार उद्घोषणा करते हुए ऐसा कहो कि . 'हे देवानुप्रियो! आगे आने वाली अटवी में मनुष्यों का आवागमन नहीं होता और वह बहुत लम्बी है। उस अटवी के मध्य भाग में 'नन्दीफल' नामक वृक्ष हैं । वे गहरे हरे (काले) वर्ण वाले यावत् पत्तों वाले, पुष्पों वाले, फलों वाले, हरे, शोभायमान और सौन्दर्य से अतीव-अतीव शोभित हैं। उनका रूप-रंग मनोज्ञ है यावत् (रस, गंध) 'स्पर्श मनोहर है और छाया भी मनोहर है। किन्तु हे देवानुप्रियो ! जो कोई भी मनुष्य उन 'नन्दीफलं वृक्षों के मूल, कंद, छाल, पत्र, पुष्प, फल, बीज या हरित का भक्षण करेगा अथवा उनकी छाया में भी बैठेगा, उसे आपाततः (थोडी-सी देर-क्षण भर) तो अच्छा लगेगा. मगर बाद में उनका परिणमन होने पर अकाल में ही वह मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा। अतएव हे देवानुप्रियो! कोई उन नंदीफलों के मूल आदि का सेवन न करे यावत् उनकी छाया में विश्राम भी न करे, जिससे अकाल में ही जीवन का नाश न हो। हे देवानुप्रियो! तुम दूसरे वृक्षों के मूल यावत् हरित का भक्षण करना और उनकी छाया में विश्राम लेना। इस प्रकार की आघोषणा कर दो। मेरी आज्ञा वापिस लौटा दो।' कौटुम्बिक पुरुषों ने आज्ञानुसार घोषणा करके आज्ञा वापिस लौटा दी। १०-तए णं धणे सत्थवाहे सगडीसागडं जोएइ, जोइत्ता जेणेव नंदिफला रुक्खा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तेसिं नंदिफलाणं अदूरसामंते सत्थनिवेसंकरेइ, करित्तादोच्चं पि तच्चं पिकोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी-तुब्भेणं देवाणुप्पिया! मम सत्थनिवेसंसि महया। महया सद्देणं उग्घोसेमाणा उग्घोसेमाणा एवं वयह-एएणं देवाणुप्पिया! ते णंदिफला
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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